सही ठहराया

ज़्वार्टे पिएट का चित्रण

ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के उस फ़ैसले को कायम रखा है, जिसके तहत ऐसे कंटेंट को हटाया गया था, जिसमें काले चेहरे के रूप में अश्वेत लोगों के हास्य चित्र पोस्ट करने पर स्पष्ट रूप से लगी रोक का उल्लंघन किया गया था, यह रोक इसके नफ़रत फैलाने वाली भाषा के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत आती है.

निर्णय का प्रकार

मानक

नीतियां और विषय

विषय
फ़ोटोग्राफ़ी, बच्चें / बच्चों के अधिकार, संस्कृति
सामुदायिक मानक
नफ़रत फ़ैलाने वाली भाषा

क्षेत्र/देश

जगह
नीदरलैंड्स

प्लैटफ़ॉर्म

प्लैटफ़ॉर्म
Facebook

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केस का सारांश

ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के उस फ़ैसले को कायम रखा है, जिसके तहत ऐसे कंटेंट को हटाया गया था, जिसमें काले चेहरे के रूप में अश्वेत लोगों के हास्य चित्र पोस्ट करने पर स्पष्ट रूप से लगी रोक का उल्लंघन किया गया था, यह रोक इसके नफ़रत फैलाने वाली भाषा के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत आती है.

केस की जानकारी

5 दिसंबर 2020 को नीदरलैंड्स के एक Facebook यूज़र ने अपनी टाइमलाइन पर डच भाषा में लिखे टेक्स्ट वाली एक पोस्ट के साथ 17 सेकंड का वीडियो शेयर किया. वीडियो में एक छोटे बच्चे की तीन वयस्कों से हुई मुलाकात को दिखाया गया है, जिनमें से एक ने “सिंटरक्लास” के जैसी और दो वयस्कों ने “ज़्वार्टे पिएट”, जिन्हें “ब्लैक पीट” भी कहा जाता है, के जैसी पोशाक पहनी है.

ज़्वार्टे पिएट का रूप धरने वाले दो वयस्कों ने अपने चेहरों पर काला रंग लगा रखा था और अफ़्रीकी स्टाइल वाली विग के ऊपर टोपी पहन रखी थी, साथ ही पुनर्जागरण-शैली के रंगीन कपड़े पहन रखे थे. वीडियो में दिखाई देने वाले सभी लोग श्वेत लग रहे थे, जिनमें वे लोग भी थे, जिनके चेहरों पर काला रंग लगा हुआ था. इस वीडियो में जश्न का म्यूज़िक प्ले होता है और ज़्वार्टे पिएट बना एक व्यक्ति उस बच्चे से कहता है, “[इ]धर देखो, और मुझे तुम्हारी टोपी मिल गई. क्या तुम इसे पहनना चाहते हो? तुम बिल्कुल पीट की तरह नज़र आओगे!”

Facebook ने नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन करने की वजह से उस पोस्ट को हटा दिया.

मुख्य निष्कर्ष

हालांकि ज़्वार्टे पिएट उस सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाता है, जिसे कई डच लोग बिना किसी नस्लवादी इरादे के निभाते हैं, इसमें काले चेहरे का उपयोग होता है, जिसे व्यापक रूप से एक हानिकारक नस्लीय रूढ़ीवादिता के रूप में देखा जाता है.

अगस्त 2020 से Facebook ने नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत काले चेहरे वाले लोगों के रूप में अश्वेत लोगों के हास्य चित्र दिखाने पर स्पष्ट रूप से रोक लगा दी है. जैसा कि बोर्ड ने पाया कि Facebook ने यूज़र्स को यह पूरी तरह से स्पष्ट किया हुआ है कि काले चेहरे दिखाने वाले कंटेंट को हटा दिया जाएगा, जब तक कि ऐसा कंटेंट इससे जुड़े गलत व्यवहार की निंदा करने या जागरूकता लाने के लिए शेयर न किया गया हो.

बोर्ड के ज़्यादातर सदस्यों को लोगों को आहत करने वाले पर्याप्त सबूत देखने को मिले, जो उस कंटेंट को हटाना सही साबित करते हैं. उन्होंने कहा कि उस कंटेंट में दिखाए गए हास्य चित्र, जो कि पूरी तरह से नकारात्मकता और नस्लीय रूढ़ीवादिता से जुड़े हुए हैं, साथ ही नीदरलैंड्स में व्यवस्थागत नस्लवाद को कायम रखने के लिए डच सोसाइटी में कहीं-कहीं देखने को मिलते हैं. उन्होंने नीदरलैंड्स में ज़्वार्टे पिएट से जुड़े नस्लीय भेदभाव और हिंसा का सामना करने वाले अश्वेत लोगों के दर्ज मामलों पर गौर किया. इनमें ऐसी रिपोर्ट शामिल थीं कि सिंटरक्लास फ़ेस्टिवल के दौरान अश्वेत बच्चे अपने घरों में डर और असुरक्षा महसूस करते थे, साथ ही स्कूल जाने से डरते थे.

बोर्ड के ज़्यादातर सदस्यों ने पाया कि Facebook पर ऐसी पोस्ट होने से अश्वेत लोगों के लिए भेदभावपूर्ण माहौल बनाने को बढ़ावा मिलेगा, जो कि अपमानजनक और उत्पीड़न करने वाला होगा. उनका मानना था कि काले चेहरे के प्रभाव Facebook की पॉलिसी को सही ठहराते हैं और उस कंटेंट को कंपनी की मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों के तहत हटाया गया था.

हालाँकि, बोर्ड के कुछ सदस्यों को वे सबूत अपर्याप्त लगे, जो कि इस कंटेंट से लोगों के आहत होने को सीधे तौर पर जोड़ते हैं और जिनकी वजह से कंटेंट हटाकर यह माना जा रहा है कि लोगों को आहत होने से बचाया गया है. उन्होंने कहा कि Facebook पर “अभिव्यक्ति” की अहमियत के कारण विशेष रूप से असहमतिपूर्ण कंटेंट का बचाव किया जाता है और हालाँकि काला चेहरा दिखाना अपमाजनक है लेकिन Facebook पर ऐसा चित्रण अन्य लोगों को हर बार आहत नहीं करेगा. उन्होंने यह तर्क भी दिया कि कुल नुकसान के आधार पर अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करने और आहत होने की व्यक्तिगत अनुभूति से लोगों को बचाने की कोशिशों में अंतर करना मुश्किल हो सकता है.

बोर्ड ने पाया कि पर्याप्त स्पष्टीकरण दिए बिना कंटेंट हटाने से संबंधित यूज़र को लग सकता है कि उसके साथ गलत हुआ. इस मामले में, यह पाया गया कि संबंधित यूज़र को यह नहीं बताया गया था कि उनके कंटेंट को विशेष रूप से Facebook की काले चेहरे से जुड़ी पॉलिसी के तहत हटाया गया था.

ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला

ओवरसाइट बोर्ड, Facebook के उस कंटेंट का हटाने का फ़ैसला कायम रखता है.

पॉलिसी से जुड़े सुझाव के कथन में बोर्ड ने सुझाव दिया कि Facebook:

  • नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड में दिए गए काले चेहरे पर रोक लगाने वाले नियम को उसके तर्क से जोड़े, साथ ही उन नुकसान के बारे में भी बताए, जिनसे यह कंपनी बचना चाहती है.
  • इस बात का ध्यान रखे कि किसी भी कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत यूज़र्स पर एक्शन किए जाने पर उन्हें हमेशा इसकी जानकारी दी जाए, जिसमें Facebook के उस नियम के बारे में बताया गया हो, जिसे लागू किया जा रहा है, जो केस 2020-003-FB-UA में बोर्ड के सुझाव के अनुसार है. Facebook जहाँ भी काले चेहरे से जुड़े अपने नियम के तहत किसी कंटेंट को हटाता है, यूज़र्स को दिए जाने वाले किसी भी नोटिस में इस नियम की जानकारी दी जानी चाहिए, साथ ही उन रिसोर्स का लिंक दिया जाना चाहिए, जो उस नुकसान के बारे में बताते हों, जिससे यह नियम बचाना चाहता है. Facebook को इस विषय पर बोर्ड की ओर से दिए गए पिछले सुझावों के "व्यवहार्यता मूल्यांकन" पर विस्तृत जानकारी भी देना चाहिए.

*केस के सारांश से केस का ओवरव्यू पता चलता है और आगे के किसी फ़ैसले के लिए इसको आधार नहीं बनाया जा सकता है.

केस का पूरा फ़ैसला

1. फ़ैसले का सारांश

ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के उस फ़ैसले को कायम रखा है, जिसके तहत ऐसे कंटेंट को हटाया गया था, जिसमें काले चेहरे के रूप में अश्वेत लोगों के हास्य चित्र पोस्ट करने पर स्पष्ट रूप से लगी रोक का उल्लंघन किया गया था, यह रोक इसके नफ़रत फैलाने वाली भाषा के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत आती है. बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने पाया कि उस कंटेंट को Facebook के कम्युनिटी स्टैंडर्ड, उसके मूल्यों और उसकी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों के अनुपालन में हटाया गया है.

2. केस का विवरण

5 दिसंबर 2020 को नीदरलैंड्स के एक Facebook यूज़र ने अपनी टाइमलाइन पर डच भाषा में लिखे टेक्स्ट वाली एक पोस्ट के साथ 17 सेकंड का वीडियो शेयर किया. अंग्रेज़ी में हुए अनुवाद के अनुसार उस पोस्ट का कैप्शन था “happy child!” and thanks Sinterklaas and Zwarte Piets (“खुश बच्चा!” और सिंटरक्लास के साथ ज़्वार्टे पिएट का धन्यवाद). वीडियो में एक छोटे बच्चे की तीन वयस्कों से हुई मुलाकात को दिखाया गया है, जिनमें से एक ने “सिंटरक्लास” के जैसी और दो वयस्कों ने “ज़्वार्टे पिएट”, जिन्हें “ब्लैक पीट” भी कहा जाता है, के जैसी पोशाक पहनी है. ज़्वार्टे पिएट का रूप धरने वाले दो वयस्कों ने अपने चेहरों पर काला रंग लगा रखा था, अफ़्रीकी स्टाइल वाली विग के ऊपर टोपी पहन रखी थी, साथ ही पुनर्जागरण-शैली के रंगीन कपड़े पहन रखे थे. वीडियो में दिखाई देने वाले सभी वयस्क लोग और बच्चा श्वेत लग रहे थे, जिनमें वे लोग भी थे, जिनके चेहरों पर काला रंग लगा हुआ था.

इस वीडियो के बैकग्राउंड में फ़ेस्टिवल म्यूज़िक प्ले होता है, तभी वह बच्चा सिंटरक्लास और ज़्वार्टे पिएट का रूप धारण किए व्यक्तियों से हाथ मिला रहा होता है. वहीं ज़्वार्टे पिएट का रूप धारण किए एक अन्य व्यक्ति उस बच्चे के सिर पर टोपी रखते हुए डच भाषा में कहता है: “[इ]धर देखो, मुझे तुम्हारी टोपी मिल गई. क्या तुम इसे पहनना चाहते हो? तुम बिल्कुल पीट की तरह नज़र आओगे! चलो देखते हैं. ये देखो....”

उस पोस्ट को 1,000 से कम बार देखा गया था. पोस्ट को देखने वाले ज़्यादातर यूज़र्स नीदरलैंड्स के थे, जिनमें कुरासाओ आईलैंड के लोग भी थे, वहीं बेल्जियम, जर्मनी और तुर्की के यूज़र्स ने भी उस कंटेंट को देखा था. उस पोस्ट पर 10 से कम कमेंट आए और 50 से भी कम रिएक्शन दिए गए, जिनमें से ज़्यादातर “लाइक” उसके बाद “बहुत पसंद” थे. उस कंटेंट को अन्य यूज़र्स ने शेयर नहीं किया था. नीदरलैंड्स के एक Facebook यूज़र ने उस पोस्ट की रिपोर्ट नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े Facebook के कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन करने के लिए की थी.

6 दिसंबर 2020 को Facebook ने नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन करने की वजह से उस पोस्ट को हटा दिया. Facebook ने निर्धारित किया कि वीडियो में ज़्वार्टे पीएट के चित्रण से काले चेहरे के रूप में अश्वेत लोगों के हास्य चित्रों पर रोक लगाने वाली उनकी पॉलिसी का उल्लंघन किया गया है. Facebook ने संबंधित यूज़र को नोटिफ़िकेशन भेजा कि उनकी पोस्ट “नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े हमारे कम्युनिटी स्टैंडर्ड के खिलाफ़ है.” उस कंटेंट को हटाने के फ़ैसले के खिलाफ़ संबंधित य़ूज़र की ओर से की गई अपील को Facebook द्वारा ख़ारिज किए जाने के बाद, उस यूज़र ने 7 दिसंबर 2020 को अपनी अपील ओवरसाइट बोर्ड को सबमिट की.

3. प्राधिकार और दायरा

बोर्ड के पास बोर्ड के चार्टर के अनुच्छेद 2 (रिव्यू करने का प्राधिकार) के तहत Facebook के फ़ैसले का रिव्यू करने का अधिकार है और वह चार्टर के अनुच्छेद 3, सेक्शन 5 (रिव्यू की प्रक्रियाएँ: चार्टर का रिज़ॉल्यूशन) के तहत उस फ़ैसले को बनाए रख सकता है या बदल सकता है. Facebook ने बोर्ड के उपनियमों के अनुच्छेद 2 के सेक्शन 1.2.1 (कंटेंट, बोर्ड के रिव्यू के लिए उपलब्ध नहीं) के अनुसार कंटेंट को हटाने के लिए कोई कारण पेश नहीं किया, न ही Facebook ने यह संकेत दिया कि वह उपनियमों के अनुच्छेद 2 के सेक्शन 1.2.2 (कानूनी दायित्व) के तहत केस को अयोग्य मानता है. बोर्ड के चार्टर के अनुच्छेद 3 के सेक्शन 4 के तहत (रिव्यू की प्रक्रियाएँ: फ़ैसले) अंतिम निर्णय में नीति सलाहकार के कथन शामिल हो सकते हैं, जिन्हें आधार मानकर ही Facebook अपनी भावी पॉलिसी विकसित करेगा.

4. प्रासंगिक स्टैंडर्ड

ओवरसाइट बोर्ड ने इन स्टैंडर्ड पर विचार करते हुए अपना फ़ैसला दिया है:

I. Facebook के कम्युनिटी स्टैंडर्ड

नफ़रत फैलाने वाली भाषा को Facebook के कम्युनिटी स्टैंडर्ड “लोगों की संरक्षित विशेषताओं – नस्ल, धर्म, राष्ट्रीय मूल, धार्मिक मान्यता, यौन अभिविन्यास, जाति, लिंग या लैंगिक पहचान और बीमारी या अक्षमता के आधार पर उन पर सीधे हमले” के रूप में परिभाषित करते हैं. सीधे हमले में “अमानवीय भाषा” और “नुकसानदेह रूढ़िवादिता” आती हैं. “टियर 1” के तहत प्रतिबंधित कंटेंट (“पोस्ट न करें”) में ऐसा कंटेंट आता है, जो किसी व्यक्ति या लोगों के समूह को संरक्षित विशेषताओं के आधार पर “निर्दिष्ट अमानवीय तुलनाओं, सामान्य विचारधारा, या व्यवहार संबंधी कथन (लिखित या विजुअल रूप से) के साथ” टार्गेट करता है. “काले चेहरे के रूप में अश्वेत लोगों का हास्य चित्र” विशेष रूप से उल्लंघन करने वाले कंटेंट के उदाहरण के रूप में शामिल किया गया है.

नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े Facebook के कम्युनिटी स्टैंडर्ड में कंपनी ने कहा है कि नफ़रत फैलाने वाली भाषा का उपयोग इस प्लेटफ़ॉर्म पर करने की परमिशन नहीं है, "क्योंकि इससे डराने-धमकाने और बहिष्कार का माहौल बनता है और कुछ मामलों में इससे वास्तविक दुनिया में हिंसा भड़क सकती है."

II. Facebook के मूल्य

Facebook के मूल्यों की रूपरेखा कम्युनिटी स्टैंडर्ड के परिचय सेक्शन में दी गई है. “अभिव्यक्ति” के महत्व को “सर्वोपरि” बताया गया है:

हमारे कम्युनिटी स्टैंडर्ड का लक्ष्य हमेशा एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म बनाना रहा है, जहाँ लोग अपनी बात रख सकें और अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें. […] हम चाहते हैं कि लोग अपने लिए महत्व रखने वाले मुद्दों पर खुलकर बातें कर सकें, भले ही कुछ लोग उन बातों पर असहमति जताएँ या उन्हें वे बातें आपत्तिजनक लगें.

Facebook "अभिव्यक्ति” को चार मूल्यों के मामले में सीमित करता है, जिनमें से दो यहाँ प्रासंगिक हैं.

“सुरक्षा”: हम Facebook को एक सुरक्षित जगह बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. धमकी भरी अभिव्यक्ति से लोगों में डर, अलगाव की भावना आ सकती या दूसरों के विचार दब सकते हैं और Facebook पर इसकी परमिशन नहीं है.

“गरिमा” : हमारा मानना है कि सभी लोगों को एक जैसा सम्मान और एक जैसे अधिकार मिलने चाहिए. हम उम्मीद करते है कि लोग एक-दूसरे की गरिमा का ध्यान रखेंगे और दूसरों को परेशान नहीं करेंगे या नीचा नहीं दिखाएँगे.

III. मानवाधिकार स्टैंडर्ड

बिज़नेस और मानव अधिकार के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ के मार्गदर्शक सिद्धांत (UNGP), जिन्हें 2011 में संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव अधिकार समिति का समर्थन मिला है, प्राइवेट बिज़नेस के मानवाधिकारों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों का स्वैच्छिक फ़्रेमवर्क बनाते हैं. इस केस में बोर्ड ने इन मानवाधिकार स्टैंडर्ड को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण किया:

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: अनुच्छेद 19, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र ( ICCPR), सामान्य कमेंट नं. 34, मानव अधिकार समिति, 2011; विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रिपोर्ट पर संयुक्त राष्ट्र का विशेष रैपर्टर: A/HRC/38/35 (2018) और A/74/486 (2019).
  • सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा बनने का अधिकार: अनुच्छेद 15, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध ( ICESCR); सामान्य टिप्पणी सं. 21, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार समिति (2009).
  • भेदभाव न किए जाने का अधिकार: अनुच्छेद 2, पैरा. 1, ICCPR; अनुच्छेद 2, हर तरह के नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अनुबंध ( ICERD); सामान्य अनुशंसा संख्या 34, नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन की समिति (CERD समिति), (2011); नीदरलैंड्स के अवलोकन का निष्कर्ष ( CERD/C/NLD/CO/19-21), CERD समिति, (2015); नस्लीय भेदभाव की पर संयुक्त राष्ट्र का विशेष रैपर्टर, रिपोर्ट A/HRC/44/57/Add.2 (2020); अफ़्रीकी वंश के लोगों पर काम करने वाले विशेषज्ञों के समूह की रिपोर्ट (WGEPAD), A/HRC/30/56/Add.1 (2015).
  • स्वास्थ्य का अधिकार: अनुच्छेद 12 ICESCR.
  • बाल अधिकार: अनुच्छेद 2 और 6, बाल अधिकारों पर अनुबंध ( CRC).

5. यूज़र का कथन

यूज़र ने बोर्ड को पेश की गई अपनी अपील में कहा कि पोस्ट उनके बच्चे के लिए थी, जिसे उससे खुशी मिली और वे चाहते हैं कि कंटेंट को Facebook पर वापस लाया जाए. यूज़र ने यह भी कहा कि इस केस में “रंग मायने नहीं रखता” क्योंकि, उनके दृष्टिकोण से ज़्वार्टे पिएट बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है.

6. Facebook के फ़ैसले का स्पष्टीकरण

Facebook ने इस पोस्ट को टियर 1 हमले के रूप में, नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत निकाल दिया, विशेष रूप से विजुअल रूप में नुकसानदेह रूढ़िवादों और अमानवीय सामान्य विचारधारा को प्रतिबंधित करने वाले इसके नियम का उल्लंघन करने के लिए, जिसमें काले चेहरे के रूप में अश्वेत लोगों के हास्य चित्र भी आते हैं. Facebook ने “काले चेहरे” की पॉलिसी की घोषणा इसके न्यूज़रूम और न्यूज़ मीडिया के ज़रिए अगस्त 2020 में की थी. उसी समय काले चेहरे वाली पॉलिसी को शामिल करने के लिए इस कंपनी ने नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड को भी अपडेट किया था. नवंबर 2020 में Facebook ने डच भाषा में एक वीडियो जारी करके इस पॉलिसी से इस प्लेटफ़ॉर्म पर ज़्वार्टे पिएट का चित्रण करने पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों को समझाया था.

Facebook ने यह भी बताया कि उस पॉलिसी को काफ़ी शोध और बाहरी हितधारकों के सहयोग से बनाया गया है. परिणाम के तौर पर Facebook ने निष्कर्ष निकाला कि ज़्वार्टे पिएट का चित्रण “अश्वेत लोगों को नीचा दिखाकर और यहाँ तक कि उन्हें अवमानवीय बताकर उनका अपमान, उनसे भेदभाव, उनका बहिष्कार और उनसे अमानवीय व्यवहार करता है”, क्योंकि उस चित्रण की विशेषताएँ “अतिशियोक्तिपूर्ण और अवास्तविक” हैं. इसके अलावा, Facebook ने कहा कि ज़्वार्टे पिएट “ऐसे दास का चरित्र है, जिसके व्यवहार में आम तौर पर फूहड़ता, मसखरापन और ऊटपटांग बातें होती हैं.”

Facebook ने सबमिट किए स्पष्टीकरण में बताया कि चूँकि “[उ]स वीडियो में दिखाए गए दो लोग बिल्कुल ब्लैक पीट जैसी पोशाक पहने हुए थे -- उनके चेहरों को काले रंग से रंगा हुआ था और वे अफ़्रीकी शैली की विग पहने हुए थे,” इस कंटेंट को हटाने का उनका फ़ैसला उनकी काले चेहरे वाली पॉलिसी के अनुसार लिया गया था. Facebook ने यह भी कहा कि उस पोस्ट में ऐसा कोई भी संकेत नहीं दिया गया था कि उस कंटेंट को निंदा करने या काले चेहरे का उपयोग करने के बारे में जागरूकता फैलानेे के लिए शेयर किया गया है, जो कि नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का एक सामान्य अपवाद है.

Facebook ने अपने स्पष्टीकरण में यह भी बताया कि उस कंटेंट को हटाना “गरिमा” और “सुरक्षा” के उसके मूल्यों के अनुरूप था, वहीं इसमें “अभिव्यक्ति” के महत्व को संतुलित रखने का ध्यान रखा गया था. Facebook प्लेटफ़ॉर्म पर ज़्वार्टे पिएट के चित्रण से हए नुकसान के बारे में Facebook के अनुसार, “भले ही यूज़र का इरादा कोई नुकसान नहीं करने का था, लेकिन इससे काफ़ी ज़्यादा नुकसान और नकारात्मक अनुभव मिल सकता है जिसकी वजह से इसे हटाया जाना चाहिए.”

Facebook ने आगे यह भी कहा कि उस कंटेंट को निकालने का फ़ैसला अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार स्टैंडर्ड का पालन करते हुए लिया गया था. Facebook ने बताया कि (a) उनकी पॉलिसी स्पष्ट और आसानी से उपलब्ध थी, (b) कंटेंट हटाने का फ़ैसला अन्य लोगों के अधिकारों का हनन होने और उन्हें भेदभाव से बचाने के लिए कानूनी रूप से सही था, साथ ही (c) “अफ़्रीकी मूल के बच्चों और वयस्कों की गरिमा और आत्मसम्मान को ठेस पहुँचने से बचाने के लिए ज़रूरी था” कि वे यह फ़ैसला लें. अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध के लिए आनुपातिकता की आवश्यकता को पूरा करने के लिए, Facebook ने तर्क दिया कि उनकी पॉलिसी “सबसे कट्टर रूढ़ियों” के सीमित सेट पर लागू होती है.

7. थर्ड पार्टी सबमिशन

ओवरसाइट बोर्ड को लोगों की ओर से इस केस पर 22 कमेंट मिले. इनमें से सात कमेंट यूरोप से और 15 कमेंट अमेरिका और कनाडा से सबमिट किए गए थे. सबमिट किए गए कमेंट में इन विषयों के बारे में जानकारी दी गई थी: ज़्वार्टे पिएट का इतिहास, क्या इस चरित्र का चित्रण अश्वेत लोगों खास तौर से अश्वेत बच्चों को आहत करता है और नफ़रत फैलाने की भाषा से जुड़ा Facebook का कम्युनिटी स्टैंडर्ड इस केस से कैसे संबंधित है और किस तरह यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार स्टैंडर्ड का अनुपालन करता है.

इस केस के संबंध में सबमिट किए गए पब्लिक कमेंट देखने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें.

8. ओवरसाइट बोर्ड का विश्लेषण

यह केस बोर्ड के सामने कई परेशानियाँ खड़ी करता है, क्योंकि इसमें लंबे समय से चली आ रही एक ऐसी सांस्कृतिक परंपरा शामिल है, जिस परंपरा में कई डच लोग हिस्सा लेते हैं और स्पष्ट नस्लवादी इरादा दर्शाए बिना इसका आनंद उठाते हैं. हालाँकि, इस परंपरा में काले रंग से चेहरे वाले लोग शामिल होते हैं, जिसे दुनिया भर में बड़े पैमाने पर लोग एक आहत करने वाली नस्लीय रूढ़ीवादिता मानते हैं, और यहाँ तक कि नीदरलैंड्स में भी ऐसा मानने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. इस केस में एक यूज़र ने अपेक्षाकृत कम ऑडियंस में शेयर किए गए एक ऐसे पारिवारिक वीडियो को Facebook द्वारा हटाए जाने पर आपत्ति ली है, जिसमें लोग बच्चे के साथ पारंपरिक उत्सव मना रहे हैं. इसमें ज़्वार्टे पिएट के चरित्र को काले चेहरे के ज़रिए दर्शाया है. यह अभिव्यक्ति का एक तरीका है, जिसे हाल ही में Facebook ने “अभिव्यक्ति” “सुरक्षा” और “गरिमा” के मूल्यों के आधार पर प्रतिबंधित करना चुना है. उसमें ऐसा कोई संकेत नहीं है, जो यह बताए कि संबंधित यूज़र का इरादा लोगों को आहत करने का था और उन्हें नहीं लगता कि यह नफ़रत फैलाने वाली भाषा के तहत आता था. वहीं दूसरी ओर शिक्षाविदों, सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषज्ञों, सार्वजनिक अधिकारियों के साथ-साथ नीदरलैंड्स में बड़ी संख्या में बढ़ रही समाजिक संस्थाओं/कंपनियों का मानना है कि यह परंपरा भेदभावपूर्ण होने के साथ लोगों को आहत कर सकती है (इस नज़रिए का समर्थन करने वाले सबूत नीचे सेक्शन 8.3 में दिए गए हैं). इस केस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से परे सांस्कृतिक अधिकार, समानता और गैर-भेदभाव, मानसिक स्वास्थ्य और बाल अधिकार सहित कई मानवाधिकार शामिल हैं.

बोर्ड इन तीन पैमानों के ज़रिए यह तय करना चाहता है कि इस कंटेंट को Facebook पर रीस्टोर किया जाना चाहिए या नहीं: Facebook कम्युनिटी स्टैंडर्ड; इस कंपनी के मूल्य; और मानवाधिकारों से जुड़ी इनकी ज़िम्मेदारियाँ. इन मुद्दों की जटिलता तार्किक लोगों के अलग-अलग निष्कर्षों पर पहुँचने की वजह बनी, और बोर्ड इस मामले में बँट गया.

8.1 कम्युनिटी स्टैंडर्ड का अनुपालन

Facebook नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड को (i) “सीधा हमला” और (ii) कोई “संरक्षित विशेषता” जिसके आधार पर हमला किया गया, उनके सामने आने पर लागू करता है. इस केस में बोर्ड Facebook से सहमत नज़र आता है, क्योंकि कम्युनिटी स्टैंडर्ड पर अमल करने के लिए आवश्यक दोनों बातें पूरी हो रहीं थी.

नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का नीतिगत तर्क “अमानवीय भाषा” और “नुकसानदेह रूढ़ियों” को हमले के उदाहरणों के तौर पर शामिल करता है. “यह पोस्ट न करें” सेक्शन के तहत, “निर्दिष्ट अमानवीय तुलनाओं, सामान्य विचारधारा, या व्यवहार संबंधी कथन (लिखित या विजुअल रूप से)” प्रतिबंधित हैं, जिन प्रतिबंधों में स्पष्ट रूप से “काले चेहरे के रूप में अश्वेत लोगों के हास्य चित्र” आते हैं. नफ़रत फैलानी वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड की संरक्षित विशेषताओं की लिस्ट में जाति और नस्ल भी आते हैं. इस केस में Facebook ने यूज़र को सूचना दी थी कि उनके कंटेंट से नफ़रत फैलानी वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन हुआ है. हालाँकि, संबंधित यूज़र को यह नहीं बताया गया था कि उनकी पोस्ट को विशेष रूप से काले चेहरे वाली पॉलिसी के तहत हटाया गया था.

बोर्ड ने ध्यान दिया कि संबंधित यूज़र ने दावा किया कि उनका इरादा पारंपरिक त्योहार की खुशियों को शेयर करना था. बोर्ड के पास यह मानने के लिए कोई भी कारण नहीं है कि इस मामले में वास्तव में यही नज़रिया था. हालाँकि, काले चेहरे से जुड़े नियम के साथ नफ़रत फैलानी वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत किसी संरक्षित विशेषता के आधार पर लोगों पर हमला करने के मामले में संबंधित यूज़र का इरादा इतना मायने नहीं रखता है. Facebook ने नियम यह मानते हुए बनाया गया है कि काले चेहरे का किसी भी तरह का उपयोग मूल रूप से भेदभावपूर्ण हमला है. इस आधार पर उस कंटेंट को निकालने का Facebook का एक्शन कंटेंट से जुड़ी उनकी पॉलिसियों के अनुसार लिया गया था.

बोर्ड ने यह पाया कि नफ़रत फैलानी वाली भाषा से जुड़ा कम्युनिटी स्टैंडर्ड में लोगों को “ऐसा कंटेंट शेयर करने की परमिशन देने के लिए एक सामान्य अपवाद शामिल है, जिसमें नफ़रत फैलानी वाली भाषा से जुड़ी किसी और की बातों, उनकी निंदा करने या जागरूकता लाने की लिए शामिल की गई हों.” उन्होंने आगे कहा कि: “हमारी पॉलिसी को इस तरह की भाषा को परमिशन देने का ध्यान रखते हुए तैयार किया गया है, लेकिन ऐसे में लोगों को अपना इरादा साफ़ तौर पर दर्शाना होगा. उद्देश्य स्पष्ट न होने पर हम उनका कंटेंट हटा भी सकते हैं.” बोर्ड ने यह माना कि यह अपवाद इस केस पर लागू नहीं होता है.

बोर्ड के ज़्यादातर लोगों ने पाया कि वीडियो में दिखाए गए दो वयस्क व्यक्तियों के पूरे चेहरे पर काला रंग पुता हुआ था, उन्होंने अफ़्रीकी शैली की विग और पुनर्जागरण-शैली के रंग-बिरंगे कपड़े पहन रखे थे और वे सिंटरक्लास के नौकरों की तरह व्यवहार कर रहे थे. उन्होंने यह भी देखा कि उस कंटेंट में संभावित नुकसानदेह रूढ़ीवादियाँ शामिल थीं, जैसे कि दासता और हीनता. इस बात को आधार मानकर, साथ ही Facebook के मूल्यों और नीचे दी गई मानवाधिकारों की ज़िम्मेदारियों का विश्लेषण करके बोर्ड ने बहुमत के साथ तय किया कि उस कंटेंट को हटाया जाना नफ़रत फैलानी वाली भाषा से जुड़े Facebook के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के अनुरूप था.

हालाँकि, बोर्ड के कुछ लोगों ने Facebook के सामान्य नियम कि काला चेहरा भयभीत करने, बहिष्कार करने और हिंसा को बढ़ावा देने का कारण बनता है, इसे लेकर अपनी चिंताएँ ज़ाहिर कीं, जिनके बारे में नीचे बताया गया है.

8.2 Facebook के मूल्यों का अनुपालन

बोर्ड के ज़्यादातर लोगों के लिए इस कंटेंट को निकालने का फ़ैसला और काले चेहरे पर लगाए गए प्रतिबंध, Facebook के “अभिव्यक्ति,” “सुरक्षा” और “गरिमा” से जुड़े मूल्यों के अनुरूप हैं.

ज़्वार्टे पिएट के चित्रण सहित काले चेहरे का उपयोग व्यापक रूप से अश्वेत लोगों के लिए अपमानजनक माना जाता है. इस मामले में, बोर्ड अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रणाली के साथ-साथ क्षेत्रीय और राष्ट्रीय प्राधिकारों की रिपोर्ट का संदर्भ लेता है, जिनके बारे में सेक्शन 8.3(III.) में ज़्यादा विस्तार से चर्चा की गई है. उस यूज़र के कंटेंट में हास्य चित्र शामिल थे, जो कि अश्वेत लोगों की दासता से पैदा हुई नकारात्मक और नस्लवादी रूढ़िवादिता से साफ़ तौर पर जुड़े हुए हैं. “अभिव्यक्ति” के मूल्य के मामले में: संबंधित यूज़र का वीडियो कोई राजनीतिक भाषण या सार्वजनिक चिंता का विषय नहीं है और यह अपने आप में विशुद्ध रूप से निजी है. आज इन हास्य चित्रों को नीदरलैंड्स में व्यवस्थागत नस्लवाद को बनाए रखने के लिए डच समाज को कुछ हिस्सों में माना जाता है. बोर्ड के ज़्यादातर लोगों के लिए यह बात निर्णायक साबित नहीं हो सकती कि संबंधित यूज़र ने उस कंटेंट को अश्वेत लोगों के प्रति बिना किसी दुर्भावना के इरादे या घृणा के शेयर किया था. Facebook पर ऐसी पोस्ट की परमिशन देने से अश्वेत लोगों के लिए भेदभावपूर्ण माहौल बनेगा, जो कि अपमानजनक और उत्पीड़क होगा. कुल मिलकार यह पॉलिसी स्पष्ट है और इस प्लेटफ़ॉर्म पर अश्वेत लोगों की गरिमा, सुरक्षा और अभिव्यक्ति का पूरा-पूरा ध्यान रखती है. इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऐसे लोगों की अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित किया जा सकता है, जो काले चेहरे के चित्रण उन संदर्भों में शेयर करते हैं, जहाँ इससे नस्लवाद की निंदा नहीं की जा रही है.

बोर्ड से जुड़े कुछ लोगों को लगता है कि इस केस में Facebook को संबंधित यूज़र की अभिव्यक्ति को ज़्यादा महत्व देना चाहिए, फिर भले ही वह अभिव्यक्ति निजी प्रकृति की हो. उन्होंने ध्यान दिलाया कि Facebook का “अभिव्यक्ति” से जुड़ा मूल्य विशेष रूप से असहमितपूर्ण और आपत्तिजनक कंटेंट को बचाता है. हालाँकि काला चेहरा अपमानजनक लग सकता है, लेकिन बोर्ड के कुछ लोगों का मानना है की Facebook पर इस तरह का चित्रण हर बार अन्य लोगों को आहत नहीं करेगा, साथ ही इस मामले में नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के अपवाद काफ़ी सीमित हैं, जिस वजह से ऐसी स्थितियाँ जिनमें आहत करने का भाव नहीं है, उनकी भी परमिशन नहीं है. इस केस में बोर्ड के कुछ सदस्यों का मानना था कि एक तरह से निजी कार्यक्रम के दौरान, उस बच्चे को खुद को ज़्वार्टे पिएट के रूप में देखने के लिए प्रोत्साहित किया गया था और उस इंटरैक्शन को सकारात्मक माना जा सकता था. इसलिए बोर्ड के कुछ सदस्य मानते हैं कि Facebook ने “अभिव्यक्ति” पर प्रतिबंध लगाने को सही ठहराने के लिए नुकसान के अपर्याप्त सबूत पेश किए हैं. उनके हिसाब से जिस नियम का उल्लंघन हुआ है उसकी जानकारी दिए बिना इस पोस्ट को हटाने से, उसे पोस्ट करने वाले यूज़र के मन में संदेह बना हुआ है और इससे “गरिमा” या “सुरक्षा” के मूल्यों को बढ़ावा नहीं मिला है.

8.3 Facebook के मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों का अनुपालन

बोर्ड के ज़्यादातर लोगों ने पाया कि नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत उस यूज़र का कंटेंट निकालना Facebook की मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों के अनुरूप है, विशेष रूप से इसके संचालन से पैदा हो सकने वाले नकारात्मक मानवाधिकार प्रभावों को दूर करने के लिए (UNGP, सिद्धांत 11 और 13).

मानवाधिकार से जुड़े ज़रूरी कदम (UNGP)

काले चेहरे पर बना Facebook का नियम उस व्यापक प्रक्रिया का परिणाम है, जिसे नुकसादेह रूढ़ीवादिताओं को लेकर बनी पॉलिसी के लिए सेट किया गया है. इस प्रोसेस को गहन शोध और 60 से भी ज़्यादा हितधारकों के सहयोग से विकसित किया गया है, जिनमें अलग-अलग क्षेत्र से जुड़ें विशेषज्ञों के साथ सिविल सोसाइटी ग्रुप और भेदभाव और नुकसानदेह रूढीवादिताओं से प्रभावित समूहों के विशेषज्ञ शामिल हैं.

ज़्यादातर के लिए यह कंपनी के कामों और पॉलिसियों को बेहतर बनाने हेतु मानवाधिकार के क्षेत्र में उठाए जा रहे ज़रूरी कदमों के अंतरराष्ट्रीय स्टैंडर्ड के अनुसार था (सिद्धांत 17(c) और 18(b) UNGP; अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र का रैपर्टर, रिपोर्ट A/74/486, पैरा 44 और 58(e)). बोर्ड से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि Facebook ने नीदरलैंड्स जैसे उन अन्य देशों में शोध के दायरे और हितधारकों की सहभागिता को लेकर अपर्याप्त जानकारी उपलब्ध करवाई, जहाँ सिंटरक्लास की परंपरा मौजूद है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 ICCPR)

ICCPR के अनुच्छेद 19, पैरा 2 में “सभी तरह की” अभिव्यक्ति के लिए विस्तृत सुरक्षा का प्रावधान किया गया है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने यह स्पष्ट किया है कि अनुच्छेद 19 के संरक्षण में ऐसी अभिव्यक्ति भी शामिल है जिसे "अत्यंत आपत्तिजनक" माना जा सकता है (सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा. 11, 12).

बोर्ड ने इस बात पर ध्यान दिया कि ICESCR के अनुच्छेद 15 के तहत सुरक्षित, सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा बनने का अधिकार भी प्रासंगिक है. सिंटरक्लास फ़ेस्टिवल में शामिल होने और काले चेहरे में ज़्वार्टे पिएट की फ़ोटो सहित Facebook पर संबंधित कंटेंट पोस्ट करने को नीदरलैंड्स के सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा बनना समझा जा सकता है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा बनने का अधिकार, दोनों का नस्ल के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी को लाभ मिलना चाहिए (अनुच्छेद 2, पैरा. 1, ICCPR; अनुच्छेद 2, पैरा. 2, IESCR).

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार बुनियादी है, लेकिन यह संपूर्ण नहीं है. इसे प्रतिबंधित किया जा सकता है, लेकिन प्रतिबंधों के लिए वैधानिकता, वैधानिक लक्ष्य और आवश्यकता तथा समानता की शर्तों को पूरा करना ज़रूरी है (अनुच्छेद 19, पैरा. 3, ICCPR). Facebook को नफ़रत फैलाने वाली भाषा से संबंधित अपनी कंटेंट मॉडरेशन पॉलिसी को इन सिद्धांतों के अनुकूल बनाने की कोशिश करनी चाहिए (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र का विशेष रैपर्टर, रिपोर्ट A/74/486, पैरा. 58(b)). इसी तरह, सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा बनने का अधिकार, अन्य मानवाधिकारों की रक्षा के लिए समान प्रतिबंधों के अधीन हो सकता है (सामान्य कमेंट सं. 21, पैरा. 19).

I. वैधानिकता

बोर्ड ने यह पाया कि यूज़र्स को यह नोटिस देने के लिए कि अगर प्रासंगिक अपवाद नहीं होगा तो काले चेहरे दिखाने वाला कंटेंट हटा दिया जाएगा, Facebook का नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ा कम्युनिटी स्टैंडर्ड काफ़ी स्पष्ट और सटीक था (सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा. 25). Facebook ने नवंबर 2020 में सिंटरक्लास फ़ेस्टिवल के पहले डच भाषा में एक वीडियो जारी करके नीदरलैंड्स में पॉलिसी के इस बदलाव के संभावित प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने की भी कोशिश की. इससे इस बात के कारण समझ में आए कि प्लेटफ़ॉर्म पर ज़्वार्टे पिएट के चित्रण की अनुमति क्यों नहीं है.

II. वैधानिक लक्ष्य

बोर्ड ने माना कि प्रतिबंध में दूसरों के अधिकारों की रक्षा करने के वैधानिक लक्ष्य को पूरा करने की कोशिश की गई (सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा. 28). इनमें नस्ल और जाति पर आधारित अधिकारों सहित समानता और गैर-भेदभाव के अधिकार शामिल हैं (अनुच्छेद 2, पैरा. 1, ICCPR; ICERD का अनुच्छेद 2). Facebook ने अभिव्यक्ति के लिए किसी प्लेटफ़ॉर्म की समान एक्सेस में भेदभाव को रोकने का वैधानिक लक्ष्य पूरा करने (ICCPR का अनुच्छेद 19) और अन्य क्षेत्रों में भेदभाव से सुरक्षित रखने की कोशिश की, जो भेदभाव का शिकार हुए लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है (ICESCR का अनुच्छेद 12), खास तौर पर उन बच्चों के लिए, जिन्हें CRC के अंतर्गत भेदभाव के खिलाफ़ अतिरिक्त सुरक्षा मिलती है और इससे विकास के उनके अधिकार की गारंटी मिलती है (CRC के अनुच्छेद 2 और 6).

बोर्ड ने यह सहमति भी दी कि अपमान से लोगों की रक्षा करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करना वैधानिक लक्ष्य नहीं है (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र का विशेष रैपर्टर, रिपोर्ट A/24, पैरा. 34), क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून द्वारा उन्मुक्त अभिव्यक्ति को बहुत ज़्यादा अहमियत दी गई है (सामान्य कमेंट सं. 38, पैरा. 38).

III. आवश्यकता और आनुपातिकता

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाले सभी प्रतिबंध "उनके सुरक्षात्मक कार्य को पूरा करने के लिए उपयुक्त होने चाहिए; वे अपने सुरक्षात्मक कार्य कर सकने वाले उपायों में से कम से कम हस्तक्षेप करने वाले उपाय होने चाहिए; उन्हें सुरक्षित रखे जाने वाले हित के अनुपात में होना चाहिए” (सामान्य कमेंट 34, पैरा. 34).

बोर्ड के अधिकांश मेंबर्स ने Facebook के नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड और इस बात पर विचार किया कि क्या अश्वेत लोगों, खासकर बच्चों के समानता और गैर-भेदभाव के अधिकार की रक्षा के लिए इस केस में काले चेहरे से संबंधित नियम को लागू करना ज़रूरी था. यह मानवाधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने देने या उनमें सहायक होने से बचने के लिए पॉलिसी अपनाने की Facebook की ज़िम्मेदारी के अनुकूल था (UNGP, सिद्धांत 13).

बोर्ड ने केस के फ़ैसले 2020-003-FB-UA में भी बताया है कि नफ़रत फैलाने वाली भाषा के बढ़ते हुए नुकसानों का समाधान करने के लिए कंटेंट को मॉडरेट करना, भले ही जहाँ अभिव्यक्ति से सीधे हिंसा या भेदभाव के लिए न उकसाया जाता हो, कुछ परिस्थितियों में मानवाधिकारों के लिए Facebook की ज़िम्मेदारियों के अनुकूल हो सकता है. बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने माना कि Facebook पर अश्वेत लोगों के अपमानजनक हास्य चित्रों के संग्रह से ऐसा माहौल बनता है, जिसमें हिंसा के कृत्यों को सहन करने और समाज में भेदभाव की स्थिति फिर से उत्पन्न करने की संभावना ज़्यादा होती है. अपमानजनक उपेक्षाओं के मामले में, सामान्य नियम लागू करने के लिए भी संदर्भ हमेशा ही महत्वपूर्ण होगा. यहाँ, नीदरलैंड्स में अश्वेत लोगों के साथ भेदभाव का अनुभव और उस अनुभव के साथ ज़्वार्टे पिएट और काले चेहरे का संबंध, अत्यंत महत्वपूर्ण था.

जैसा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपर्टर द्वारा ध्यान दिया कि “घृणास्पद अभिव्यक्ति का निराकरण करने वाली [सोशल मीडिया कंपनियाँ] के दायरे और पेचीदगी से लंबे समय की चुनौतियाँ सामने आती हैं और इनके कारण कंपनियाँ ऐसी अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित कर सकती हैं, भले ही यह विपरीत परिणामों से स्पष्ट रूप से जुड़ी न हो (क्योंकि [ICCPR] के अनुच्छेद 20 में घृणास्पद समर्थन उकसावे से जुड़ा है).” (रिपोर्ट A/HRC/38/35, पैरा. 28). विशेष रैपर्टर ने यह भी बताया कि कंपनियाँ, भेदभाव या हिंसा के लिए उकसाने की सीमा में न आने वाली नफ़रत फैलाने वाली भाषा को हटा सकती हैं; अभिव्यक्ति से संबंधित आपराधिक या नागरिक कानून में प्रतिबंधों को सही साबित करने हेतु राज्य को ज़रूरी उच्च मानक से हटते समय, कंपनियों को मानवाधिकार मानकों के अनुसार स्पष्टीकरण देते हुए, पॉलिसी में बदलाव का यथोचित विवरण देना होगा (A/74/486, पैरा. 47 – 48).

बोर्ड ने इस बात पर ध्यान दिया कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून किसी राज्य को आपराधिक या नागरिक प्रतिबंधों के ज़रिए काले चेहरे पर एक सामान्य रोक लगाने अनुमति नहीं देगा, केवल ICCPR के अनुच्छेद 20 के पैरा. 3 और अनुच्छेद 19 के पैरा. 3 को छोड़ कर (जैसे हिंसा के उकसावे से होने वाली नफ़रत का समर्थन) (A/74/486, पैरा. 48). इस सीमा में नहीं आने वाली अभिव्यक्ति से भी सहिष्णुता, नागरिकता और दूसरों के लिए सम्मान के संदर्भ में चिंता उत्पन्न हो सकती है, लेकिन प्रतिबंधित करने हेतु किसी राज्य के लिए आवश्यक या आनुपातिक नहीं होगी (रबात प्लान ऑफ़ एक्शन, पैरा. 12, 20). बोर्ड के विचार में, इस केस की व्यक्तिगत पोस्ट, राज्य प्रतिबंध की ओर से सुरक्षा की इस श्रेणी में आएगी.

बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने यह पाया कि इस केस में Facebook ने अंतरराष्ट्रीय मार्गदर्शन का पालन किया और मानवाधिकारों से जुड़ी अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा किया. कई मानवाधिकार प्रक्रियाओं में ज़्वार्टे पिएट के चित्रण को हानिकारक रूढ़िवादी के रूप में पाया गया है, जिनमें इसे नीदरलैंड्स में संरचनागत नस्लवाद से जोड़ा गया है, जिसके सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर गंभीर नुकसान हैं. बोर्ड के अधिकांश लोगों के लिए इससे Facebook का ऐसी पॉलिसी को अपनाना सही साबित हुआ, जो मानवाधिकार मानकों के लिए बाध्यकारी राज्यों से अलग है, जहाँ काला चेहरा दिखाने वाला कंटेंट शेयर करने वाले व्यक्ति का इरादा तभी महत्वपूर्ण है जब वे इसके उपयोग की निंदा कर रहे हों या जागरूकता फैला रहे हों.

CERD समिति ने अपनी 'नीदरलैंड्स से जुड़ी समापन कमेंट' में बताया कि ज़्वार्टे पिएट "अफ़्रीकी मूल के कई लोगों द्वारा दासता की भावना के रूप में अनुभव किया जाता है" और यह देश में संरचनागत नस्लवाद से जुड़ा है ( CERD/C/NLD/CO/19-21, पैरा. 15 और 17). बोर्ड के अधिकांश मेंबर्स ने ध्यान दिया कि अफ़्रीकी मूल के लोगों पर काम करने वाला संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ समूह भी ऐसे ही निष्कर्षों पर पहुँचा है ( A/HRC/30/56/Add.1, पैरा. 106). बोर्ड, CERD समिति से सहमत है कि "गहरी जड़ें जमा चुकी एक सांस्कृतिक परंपरा भी भेदभावपूर्ण प्रथाओं और रूढ़ियों को सही साबित नहीं करती" ( CERD/C/NLD/CO/19-21, पैरा. 18; यह भी देखें, UN ESCR समिति, सामान्य कमेंट सं. 21, पैरा. 18 और 51).

बोर्ड के अधिकांश मेंबर, नीदरलैंड्स में अश्वेत लोगों के नस्लीय भेदभाव और हिंसा से जुड़े प्रमाणित अनुभवों से भी सहमत थे, जो अक्सर ज़्वार्टे पिएट की सांस्कृतिक प्रथा से जुड़े हुए थे और इसके ज़रिए बढ़ाए गए थे. बच्चों के डच ओम्बड्समैन की खोज कि "ज़्वार्टे पिएट के चित्रण धमकी, बहिष्कार और अश्वेत बच्चों के विरुद्ध भेदभाव में सहायक हो सकते हैं," और साथ ही ये रिपोर्ट कि सिंटरक्लास फ़ेस्टिवल के दौरान अश्वेत बच्चों ने अपने घरों में भयभीत और असुरक्षित महसूस किया और वे स्कूल जाने में डर रहे थे, दोनों ही प्रवर्तक हैं. इसके अलावा, बोर्ड ने ज़्वार्टे पीएट का शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ धमकी और हिंसा के रिपोर्ट किए गए एपिसोड पर ध्यान दिया ( CERD/C/NLD/CO/19-21, पैरा. 17). बोर्ड ने नस्लवाद और असहिष्णुता के खिलाफ़ यूरोपीय आयोग की ( नीदरलैंड्स के संबंध में ECRI की रिपोर्ट, पैरा. 30-31), नीदरलैंड्स मानवाधिकार संस्था तथा यूरोपीय आयोग के लैंगिक समानता और गैर-भेदभाव के कानूनी विशेषज्ञों के नेटवर्क ( यूरोपीय आयोग की देश से जुड़ी रिपोर्ट नीदरलैंड्स 2020, पेज 24, फ़ुटनोट 89) के काम पर भी ध्यान दिया.

बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने इस पर भी ध्यान दिया कि पहले से अधिकारहीन कर दिए गए अल्पसंख्यकों के बारे में बार-बार नकारात्मक रूढ़िवादिताओं, जिसमें सोशल मीडिया पर फ़ोटो के रूप में शेयर किया जाना शामिल है, का लोगों पर मानसिक असर पड़ता है, जिसका प्रभाव सामाजिक स्तर पर भी होता है. इस विशेष रूढ़िवादिता के बार-बार प्रदर्शन से ऐसे लोग जो अश्वेत नहीं हैं, उनके मन में नस्लीय श्रेष्ठता के विचार आ सकते हैं, जो लोगों को भेदभाव और हिंसा को सही ठहराने और यहाँ तक कि इन्हें उकसाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं. अश्वेत लोगों के लिए ऐसी फ़ोटो के बार-बार प्रदर्शन के बढ़ते हुए प्रभाव के साथ-साथ हिंसा और भेदभाव का सामने करने से खासकर बच्चों के स्वाभिमान और स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है (ICESCR का अनुच्छेद 12; CRC के अनुच्छेद 2 और 6). बोर्ड ने इस संबंध में इज़ालीना टेवरेेस के कार्य “ Black Pete: Analyzing a Racialized Dutch Tradition Through the History of Western Creations of Stereotypes of Black Peoples” पर ध्यान दिया.

अन्य शैक्षणिक अध्ययनों से ज़्वार्टे पीएट के चित्रण और नुकसान के बीच कारण बताने वाला संबंध भी दिखाई दिया है, जिनमें से कई को Facebook ने बोर्ड के सामने अपने निर्णय संबंधी तर्क में भी शामिल किया. इनमें जूडी मेसमैन, सोफ़ी जैनसन और लेनी वेन रोसमलेन का “ Black Pete through the Eyes of Dutch Children,” और यवॉन वेन देर पिज्ल और करीना गौरलोर्दवा का “ Black Pete, “Smug Ignorance,” and the Value of the Black Body in Postcolonial Netherlands” शामिल है. यह इस विषय से संबंधित व्यापक साहित्य से संगत है, जिसमें जॉन एफ़. दोवीदियो, माइल्स ह्यूस्टोन, पीटर ग्लिक और विक्टोरिया एम. एसेस का “ Prejudice, Stereotyping and Discrimination: Theoretical and Empirical Overview” शामिल है.

बोर्ड के अधिकांश सदस्यों के अनुसार, इस नियम को ऐसे नियम से अलग करने के लिए लोगों के अधिकारों को सामान्य नुकसान पहुँचाने का पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, जिससे व्‍यक्तिनिष्‍ठ अपमान से लोगों को बचाने के प्रयास किए जाते हैं.

बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने हटाने की कार्रवाई को यथोचित पाया. लेबल, चेतावनी की स्क्रीन लगाना या प्रसार कम करने के अन्य उपाय करना, ऐसे कम हस्तक्षेप वाले एक्शन से प्लेटफ़ॉर्म पर इस तरह के कंटेंट को बने रहने के बढ़ते हुए प्रभावों से उचित सुरक्षा नहीं मिलती. बड़े पैमाने पर कंटेंट पर प्रतिबंध लगाते समय उद्देश्य का मूल्यांकन करने की चुनौती पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. इसके लिए एक-एक केस की जाँच ज़रूरी होगी, जिससे गंभीर अनिश्चितता का जोखिम पैदा होगा, इसलिए किसी सामान्य नियम लागू करने को वरीयता मिलेगी जिसे कि आसानी से लागू किया जा सके (तुलनात्मक दृष्टिकोण के लिए यह देखें: यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय, Animal Defenders International बनाम यूनाइटेड किंगडम का केस, पैरा. 108).

बोर्ड के अधिकांश मेंबर्स ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि Facebook द्वारा लगाई गई रोक का प्रभाव सभी चीज़ों पर नहीं पड़ा और यह भी कि सही प्रवर्तन के लिए व्यक्ति द्वारा रिव्यू की उपलब्धता महत्वपूर्ण होगी. नफ़रत फैलाने वाली भाषा के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के अंतर्गत एक अपवाद है, जो कि काले चेहरे वाली पॉलिसी पर भी लागू होता है, जिसमें निंदा करने के उद्देश्य से या नफ़रत फैलाने वाली भाषा को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए काले चेहरे के प्रदर्शन को परमिशन दी जा सकती है. समाचार में देने की योग्यता की परमिशन से Facebook उस स्थिति में प्लेटफ़ॉर्म पर उल्लंघन करने वाले कंटेंट की अनुमति भी दे सकता है, जब अभिव्यक्ति में निहित सार्वजनिक हित, नुकसान होने के जोखिम से ज़्यादा हो (जैसे, अगर किसी सार्वजनिक हस्ती की काले चेहरे वाली फ़ोटो या फ़ुटेज राष्ट्रीय समाचार कवरेज का विषय बन जाते हैं).

काले चेहरे का उपयोग छोड़कर बदली हुईं "पिएट" परंपराएँ भी नफ़रत फैलाने वाली भाषा के कम्युनिटी स्टैंडर्ड से प्रभावित नहीं होती हैं और यह बोर्ड के अधिकांश सदस्यों के लिए महत्वपूर्ण था. इसलिए, अगर यूज़र अपने Facebook अकाउंट के ज़रिए अपनी परंपरा का फ़ुटेज शेयर करना चाहता है तो वह उसे रूपांतरित कर सकता है. नीदरलैंड्स में समाजिक संस्थाओं/कंपनियों की बढ़ती संख्या ने इस परंपरा से अपने आप को दूर कर लिया है और/या वैकल्पिक और समावेेशी रूपों को बढ़ावा दिया है ( जाति और काल्पनिक चित्रण की यूरोपीय संस्था की रिपोर्ट, पेज 7, 24 और 56-58). नस्लवाद और श्वेत लोगों की श्रेष्ठता वाली वैश्विक मान्यता की पृष्ठभूमि के खिलाफ़, समानता और गैर-भेदभाव को बढ़ावा देने वाले कारगर नियमों और प्रक्रियाओं को अपनाना Facebook की मानवाधिकारों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों से संगत है.

बोर्ड के अधिकांश सदस्यों के तर्कों की सराहना करते हुए बोर्ड के शेष सदस्यों ने यह नहीं माना कि ज़रूरत और अनुपातिकता की शर्तें पूरी हुई थीं. उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि यह नियम अनावश्यक रूप से व्यापक है और अधिक सूक्ष्म पॉलिसी से Facebook को भेदभाव से संबंधित उचित चिंताओं का समाधान करने के साथ ही ऐसी अभिव्यक्ति को होने वाले अतिरिक्त नुकसान से बचाने में मदद मिलेगी, जिसका उद्देश्य सीधे तौर पर नुकसान पहुँचाना नहीं होता. बोर्ड के शेष मेंबर ने माना कि यह निश्चित रूप से प्रासंगिक है, लेकिन समीक्षाधीन अभिव्यक्ति और रोके जाने वाले नुकसान या अभिव्यक्ति को सीमित करने से कम किए गए नुकसान के बीच, सटीक शब्दों में कारण संबंध दिखाने के लिए पेश किए गए सबूत पर्याप्त नहीं थे (सामान्य कमेंट 34, पैरा. 34): पॉलिसी में ऐसी संभावना होनी चाहिए कि ऐसी अभिव्यक्ति का लक्ष्य हमेशा नुकसान पहुँचाना या उसमें सहायक होना ही नहीं होगा. बोर्ड के शेष मेंबर ने ध्यान दिया कि मौजूदा पॉलिसी के अत्यधिक प्रवर्तन से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुचित प्रभाव पड़ने की संभावना है. उन्होंने यह भी पाया कि बढ़ते हुए नुकसान की धारणा के आधार पर कंटेंट को हटाने से इस तरह के प्रतिबंधों को उन नियमों से अलग करना मुश्किल हो जाता है, जिनसे लोगों को अपराध की व्यक्तिनिष्ठ भावनाओं से बचाने के प्रयास किए जाते हैं. इसी तरह, बोर्ड के शेष मेंबर्स ने यह माना कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत, लोगों पर पड़ने वाले एक सामान्य नकारात्मक मानसिक प्रभाव, जिसकी वजह से समाज पर भी असर पड़ सकता है, इसे पर्याप्त रूप से नहीं दर्शाया गया और इससे लोगों की अभिव्यक्ति के साथ हस्तक्षेप सही साबित नहीं होता, जब तक कि यह उकसाने की सीमा में नहीं आता (अनुच्छेद 20, पैरा. 2, ICCPR). उन्होंने यह चिंता भी जाहिर की कि Facebook की क्षमता का उपयोग इस तरह से किया जा सकता है जिससे राष्ट्रीय चर्चा के अंतर्गत आने वाले किसी मामले में हस्तक्षेप होगा और जो ऐसे लोकतांत्रिक समाज की प्रक्रियाओं को बिगाड़ सकता है या यहाँ तक कि उन पर दवाब बना सकता है जो भेदभाव का विरोध करेगा.

बोर्ड के शेष सदस्यों ने माना कि जहाँ यूज़र का उद्देश्य नुकसान पहुँचाना नहीं है और जहाँ नुकसान होने की संभावना नहीं है, वहाँ संभावित रूप से भेदभावपूर्ण कंटेंट को बड़े पैमाने पर हटाने से नस्लीय भेदभाव का प्रभावी ढंग से समाधान नहीं होगा. वे बोर्ड के अधिकांश सदस्यों से सहमत थे कि यूज़र को पर्याप्त स्पष्टीकरण दिए बिना कंटेंट हटाना अनुचित समझा जाता है. जहाँ किसी भी तरह का नुकसान पहुँचाने का इरादा न हो, वहाँ "हमले" और "नफ़रत फैलाने वाला भाषा" के दोषी होने के कारण पैदा होने वाले भ्रम से Facebook पर और उसके बाहर लोगों के बीच Facebook की कंटेंट पॉलिसी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनमें स्पष्टता लाने के प्रयास कमज़ोर पड़ सकते हैं. बोर्ड के शेष सदस्यों के लिए, अगर कंटेंट को हटाने के नोटिस से यूज़र को लागू किए गए नियम की प्रामाणिकता के संबंध में और जानकारी दी जाए, तो इसका समाधान होगा और प्लेटफ़ॉर्म को अधिक समावेशी बनाया जाएगा, जिसमें ऐसे संभावित नुकसान को समझाने वाले रिसोर्स की एक्सेस शामिल हो, जिन्हें कम करने का Facebook प्रयास कर रहा है.

9. ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला

ओवरसाइट बोर्ड, Facebook के उस कंटेंट का हटाने का फ़ैसला कायम रखता है.

10. पॉलिसी से जुड़े सुझाव का कथन

इन सुझावों की गिनती की जाती है और बोर्ड यह अनुरोध करता है कि Facebook ड्राफ़्ट किए गए अनुसार हर सुझाव के अलग-से जवाब दे.

Facebook पर यूज़र्स को काले चेहरे वाली पॉलिसी समझाना

  1. Facebook को नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड में दिए गए काले चेहरे पर रोक लगाने वाले नियम को कंपनी के तर्क से जोड़ना चाहिए, साथ ही उन नुकसानों के बारे में भी बताना चाहिए, जिनसे यह बचना चाहती है.
  2. केस 2020-003-FB-UA में बोर्ड के सुझाव का ध्यान रखते हुए Facebook को “यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत यूज़र्स पर एक्शन लिए जाने पर उन्हें हमेशा इसकी जानकारी दी जाए, जिसमें Facebook के लागू होने वाले नियम के बारे में बताया गया हो,.” इस केस में यूज़र्स को दिए गए किसी भी नोटिस में काले चेहरे से संबंधित नियम के बारे में बताया जाना चाहिए और यह उपर्युक्त रिसोर्स से लिंक भी होने चाहिए जो उस नुकसान को समझाते हैं जिसे रोकने का प्रयास इस नियम से किया जाता है. Facebook को इस विषय को लेकर बोर्ड के पिछले सुझावों के अपने "व्यवहार्यता मूल्यांकन" के बारे में विस्तृत जानकारी देनी चाहिए, जिसमें सभी तकनीकी सीमाओं की विशेष प्रकृति और इनसे निपटने का तरीका शामिल है.

*प्रक्रिया सबंधी नोट:

ओवरसाइट बोर्ड के फ़ैसले पाँच सदस्यों के पैनल द्वारा लिए जाते हैं और बोर्ड के अधिकांश सदस्य इन पर सहमति देते हैं. ज़रूरी नहीं है कि बोर्ड के फ़ैसले उसके हर एक मेंबर की निजी राय को दर्शाएँ.

इस केस के फ़ैसले के लिए, बोर्ड की ओर से स्वतंत्र शोध को अधिकृत किया गया. एक स्वतंत्र शोध संस्थान जिसका मुख्यालय गोथेनबर्ग यूनिवर्सिटी में है और छह महाद्वीपों के 50 से भी ज़्यादा समाजशास्त्रियों की टीम के साथ ही दुनिया भर के देशों के 3,200 से भी ज़्यादा विशेषज्ञों ने सामाजिक-राजनैतिक और सांस्कृतिक संदर्भ में विशेषज्ञता मुहैया कराई है.

मामले के निर्णयों और नीति सलाहकार राय पर लौटें