सही ठहराया
पाकिस्तानी संसद में दिए गए भाषण की रिपोर्टिंग
ओवरसाइट बोर्ड ने पाकिस्तान में एक न्यूज़ आउटलेट द्वारा शेयर की गई उस पोस्ट को बनाए रखने के फ़ैसले को कायम रखा जिसमें देश की संसद में एक राजनेता के भाषण का वीडियो था. बोर्ड मानता है कि चुनावों के पहले ऐसे प्रतीकात्मक भाषण की सुरक्षा करना बुनियादी ज़रूरत है.
सारांश
ओवरसाइट बोर्ड ने पाकिस्तान में एक न्यूज़ आउटलेट द्वारा शेयर की गई उस पोस्ट को बनाए रखने के फ़ैसले को कायम रखा जिसमें देश की संसद में एक राजनेता के भाषण का वीडियो था. वह पोस्ट हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं करती क्योंकि वह “जागरूकता फैलाने” से जुड़े अपवाद के अंतर्गत आती है. इसके अलावा, अगर पूरे भाषण को देखा जाए, तो बलिदान किए जा रहे या “लटकाए” जा रहे सरकारी अधिकारियों के बारे में राजनेता के रेफ़रेंस प्रतीकात्मक (गैर-शाब्दिक) हैं जिनका उद्देश्य पाकिस्तान के राजनैतिक संकट और संस्थाओं के बीच जवाबदेही की कमी की ओर ध्यान खींचना है. बोर्ड मानता है कि राष्ट्रीय चुनावों के पहले अस्थिरता के समय में, ऐसे भाषण की रक्षा करना बुनियादी काम है.
केस की जानकारी
मई 2023 में, पाकिस्तान के एक स्वतंत्र न्यूज़ आउटलेट ने अपने Facebook पेज पर एक पाकिस्तानी राजनेता का भाषण पोस्ट किया. यह भाषण देश की संसद में उर्दू भाषा में दिया गया था. इस भाषण में राजनेता ने जो रेफ़रेंस दिए, उन्हें उन्होंने मिस्र की प्राचीन “परंपरा” बताया जिसमें लोगों ने नील नदी की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए अपना बलिदान दिया था. राजनेता ने इस रेफ़रेंस का उपयोग करते हुए कहा कि उनके विचार से आज के पाकिस्तान में इस बलिदान की ज़रूरत है. उन्होंने अपने एक पुराने भाषण की भी याद दिलाई जिसमें उन्होंने कहा था कि देश तब तक बेहतर हालत में नहीं आ सकता जब तक कि सेना सहित सरकारी अधिकारियों को “लटका” नहीं दिया जाता. राजनेता ने खुद को और अपने सहयोगियों को भी उन अधिकारियों में शामिल किया जिन्हें बलिदान देना चाहिए, यह कहते हुए कि अभी देश में जो हो रहा है, उसके लिए वे सभी ज़िम्मेदार हैं. उनके भाषण में जारी राजनैतिक संकट की ओर इशारा किया गया था और सरकारी और सैन्य संस्थाओं की आलोचना की गई थी. पोस्ट को लगभग 20,000 बार शेयर किया गया था और उसे 40,000 रिएक्शन मिले.
स्थानीय न्यूज़ आउटलेट ने देश में होने वाले आम चुनावों के पहले इस वीडियो को पोस्ट किया जो 2023 में होने वाले थे, लेकिन फ़रवरी 2024 तक टाल दिए गए. राजनैतिक अस्थिरता के समय में, जब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना के बीच बढ़ता हुआ टकराव देखा गया, देश में राजनैतिक विरोध प्रदर्शन और बढ़ता हुआ ध्रुवीकरण देखा गया. राजनैतिक विरोधियों की धरपकड़ की गई और बलूचिस्तान में, जो इस राजनेता की पार्टी का गढ़ है, सरकार द्वारा दमन खास तौर पर स्पष्ट देखा गया.
2023 में तीन माह की अवधि के दौरान, Meta के ऑटोमेटेड सिस्टम ने 45 बार इस पोस्ट की पहचान संभावित तौर पर उल्लंघन करने वाले कंटेंट के रूप में की. दो ह्यूमन रिव्यूअर्स ने इस पोस्ट के बारे में अलग-अलग फ़ैसले दिए, एक ने इसे उल्लंघन नहीं करने वाला माना जबकि दूसरे ने पाया कि यह पोस्ट हिंसा और उकसावे से जुड़ी पॉलिसी के नियमों का उल्लंघन करती है. जिस अकाउंट से कंटेंट को शेयर किया गया था, वह Meta के क्रॉस-चेक प्रोग्राम का भाग है, इसलिए पोस्ट को अतिरिक्त लेवल के रिव्यू के लिए मार्क किया गया था. अंततः Meta के पॉलिसी और विषय विशेषज्ञों ने पोस्ट को उल्लंघन नहीं करने वाला पाया. Meta ने इस केस को बोर्ड को रेफ़र किया क्योंकि राजनैतिक भाषणों के संबंध में उपयोग किए जाते समय यह केस अभिव्यक्ति और सुरक्षा की उसकी वैल्यू के बीच तनाव दर्शाता है.
मुख्य निष्कर्ष
बोर्ड ने पाया कि पोस्ट, हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं करती क्योंकि इसे एक मीडिया आउटलेट द्वारा शेयर किया गया था जो दूसरों तक जानकारी पहुँचाना चाहता है और इसलिए यह पोस्ट “जागरूकता फैलाने” से जुड़े अपवाद के तहत आती है. चुनावों से पहले संसद में दिए गए इस भाषण में राजनेता ने निसंदेह रूप से जनहित के मुद्दों पर बात की, जिनमें राजनीति और सार्वजनिक डोमेन की घटनाएँ शामिल थीं. स्थानीय न्यूज़ आउटलेट द्वारा राष्ट्रीय अस्थिरता के समय में शेयर किए गए इस भाषण को “खास तौर पर उच्च” सुरक्षा मिलनी चाहिए थी. इसके अलावा, पोस्ट के कैप्शन में राजनेता के भाषण से सहमति या समर्थन नहीं जताया गया था, बल्कि इसमें भाषण पर संसद में हुई तीव्र प्रतिक्रिया की ओर इशारा किया गया था.
मई 2023 में पोस्ट को शेयर करने के समय, “जागरूकता फैलाने” से जुड़ा अपवाद सिर्फ़ रिव्यूअर्स के लिए Meta की आंतरिक गाइडलाइन में शामिल किया गया था और सार्वजनिक नहीं था, लेकिन बोर्ड के एक पहले के सुझाव का पालन करते हुए इसे तब से कम्युनिटी स्टैंडर्ड में शामिल किया गया है.
बोर्ड ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि जब राजनेताओं के हिंसा भड़का सकने वाले भाषणों पर हिंसा और उकसावे से जुड़ी पॉलिसी लागू करते समय संदर्भ का आकलन करना महत्वपूर्ण होता है. इस केस में, पोस्ट से ऐसा कोई प्रामाणिक खतरा नहीं था जिससे मौत हो सकती हो. यह पोस्ट एक राजनेता के भाषण की एक न्यूज़ रिपोर्ट थी जिसमें उसने पाकिस्तान के राजनैतिक संकट पर कमेंट करने के लिए प्रतीकात्मक भाषा का उपयोग किया था. अधिकारियों को “लटकाने” और मिस्र में बलिदान की प्राचीन परंपरा की तुलना, स्पष्ट रूप से रूपक और राजनैतिक अतिशयोक्ति थी, न कि कोई वास्तविक धमकी. बोर्ड ने जिन विशेषज्ञों से परामर्श किया, उन्होंने यह कन्फ़र्म किया कि पाकिस्तानी राजनेता अक्सर उन मुद्दों पर लोगों का ध्यान खींचने के लिए अत्यंत आक्रामक और भड़काऊ भाषा का उपयोग करते हैं जिन्हें वे महत्वपूर्ण समझते हैं. राजनेता ने अपने भाषण में किसी खास टार्गेट का नाम नहीं लिया; इसके बजाय, उन्होंने खुद सहित सामान्य सरकारी अधिकारियों का उल्लेख किया. समग्र रूप से देखे जाने पर, उनके भाषण में व्यापक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करते हुए सरकारी अधिकारियों के बीच जवाबदेही के लिए तत्काल कार्रवाई करने की ज़रूरत की बात कही गई है. उन व्यापक मुद्दों में बलूचिस्तान के लोगों के खिलाफ़ मानवाधिकार के उल्लंघन का मुद्दा शामिल है.
इसलिए बोर्ड मानता है कि चुनावों के पहले ऐसे भाषण की सुरक्षा करना बुनियादी ज़रूरत है.
ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला
ओवरसाइट बोर्ड ने कंटेंट को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा है.
बोर्ड ने कोई नया सुझाव नहीं दिया लेकिन उसने ब्राज़ील के जनरल का भाषण फ़ैसले में दिए अपने सुझाव सं. 1 को यह सुनिश्चित करने के लिए दोहराया कि चुनावों से पहले जिन बयानों का अत्यधिक जनहित महत्व होता है, उनकी सुरक्षा Meta के प्लेटफ़ॉर्म पर की जानी चाहिए. खास तौर पर, बोर्ड ने कहा कि Meta “मीट्रिक बनाने और शेयर करने सहित चुनाव के संबंध में कंपनी के प्रयासों का मूल्यांकन करने” के लिए फ़्रेमवर्क के अपने क्रियान्वयन में तेज़ी लाए. वैश्विक बहुसंख्यक देशों सहित 2024 में बड़ी संख्या में चुनावों को देखते हुए या खास तौर पर महत्वपूर्ण है.
*केस के सारांश से केस का ओवरव्यू मिलता है और आगे के किसी फ़ैसले के लिए इसको आधार नहीं बनाया जा सकता है.
केस का पूरा फ़ैसला
1.फ़ैसले का सारांश
ओवरसाइट बोर्ड ने एक न्यूज़ आउटलेट द्वारा शेयर की गई उस पोस्ट को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा जिसमें पाकिस्तान में आम चुनावों से पहले देश की संसद में एक राजनेता के भाषण का वीडियो था. पोस्ट के साथ एक कैप्शन था जिसमें संसद में भाषण पर हुई तीव्र प्रतिक्रिया के बारे में बताया गया था. इस भाषण में राजनेता ने जो रेफ़रेंस दिए, उन्हें उन्होंने मिस्र की प्राचीन “परंपरा” बताया जिसमें लोगों ने नील नदी की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए अपना बलिदान दिया था. राजनेता ने इस रेफ़रेंस का उपयोग करते हुए कहा कि उनके विचार से आज के पाकिस्तान में इस बलिदान की ज़रूरत है. उन्होंने अपने एक पुराने भाषण की भी याद दिलाई जिसमें उन्होंने कहा था कि देश तब तक बेहतर हालत में नहीं आ सकता जब तक कि सरकारी अधिकारियों को “लटका” नहीं दिया जाता. उनका भाषण आम चुनावों से पहले पाकिस्तान की गंभीर राजनैतिक अस्थिरता के संदर्भ में है और वह सरकारी और सैन्य संस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण है.
बोर्ड ने पाया कि पोस्ट, हिंसा और उकसावे से जुड़ी पॉलिसी का उल्लंघन नहीं करती क्योंकि इसे एक मीडिया आउटलेट द्वारा शेयर किया गया था जो दूसरों तक जानकारी पहुँचाना चाहता है और इसलिए यह पोस्ट “जागरूकता फैलाने” से जुड़े अपवाद के तहत आती है. न्यूज़ आउटलेट द्वारा राजनेता के शेयर किए गए भाषण में जनहित के मुद्दों को शामिल किया गया था और वह भाषण देश में अस्थिरता के माहौल में चुनावों के पहले संसद में दिया गया था. बोर्ड ने यह भी पाया कि पोस्ट के कैप्शन में राजनेता के भाषण से सहमति या समर्थन नहीं जताया गया था, बल्कि इसमें भाषण पर संसद में हुई तीव्र प्रतिक्रिया की ओर इशारा किया गया था. बोर्ड मानता है कि राष्ट्रीय चुनावों के पहले अस्थिरता के समय में, ऐसे भाषण की रक्षा करना बुनियादी काम है.
इसके अलावा, संदर्भ को देखते हुए और राजनेता के पूरे भाषण पर विचार करते हुए, बोर्ड ने माना कि प्रासंगिक कथन शाब्दिक के बजाय प्रतीकात्मक है. अधिकारियों को “लटकाने” और मिस्र में बलिदान की प्राचीन परंपरा की तुलना, स्पष्ट रूप से रूपक और राजनैतिक अतिशयोक्ति थी, न कि कोई वास्तविक धमकी जिससे किसी की मौत हो. राजनेता ने अपने भाषण में किसी खास टार्गेट का नाम नहीं लिया और उन्होंने उन बलिदानियों में खुद को भी शामिल किया. बोर्ड इस नतीजे पर पहुँचा कि उनके भाषण को सरकारी अधिकारियों के बीच जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता के रूप में समझा जाना चाहिए और उन्होंने पाकिस्तान की व्यापक सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है.
2. केस की जानकारी और बैकग्राउंड
16 मई, 2023 को पाकिस्तान के उर्दू भाषा के एक छोटे लोकल न्यूज़ आउटलेट ने अपने Facebook पेज पर एक पाकिस्तानी राजनेता का वीडियो पोस्ट किया. यह भाषण देश की संसद में एक दिन पहले दिया गया था. उर्दू भाषा में दिए गए इस भाषण में राजनेता ने जो रेफ़रेंस दिए, उन्हें उन्होंने मिस्र की प्राचीन “परंपरा” बताया जिसमें लोगों ने नील नदी की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए अपना बलिदान दिया था. राजनेता ने अपनी इस राय के भाग के रूप में इस “परंपरा” का संदर्भ दिया कि आज के समय में पाकिस्तान में क्या होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अपने पिछले भाषण में उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान के हालात तब तक नहीं सुधरेंगे जब तक कि सेना सहित अलग-अलग तरह के सरकारी अधिकारियों को “लटका” नहीं दिया जाता.
राजनेता ने फिर पाकिस्तान में जारी राजनैतिक संकट की ओर इशारा किया और कहा कि ये समस्याएँ संसदीय चुनावों के पहले देश को प्रभावित कर रही हैं जिनमें बलूचिस्तान में लोगों की गुमशुदगी शामिल है. साथ ही उन्होंने ऐसे रेफ़रेंस दिए जो सरकारी और सैन्य संस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने आगे कहा कि “बाढ़” को रोकने के लिए, उन्हें “बलिदान” देने होंगे. राजनेता ने खुद को और अन्य सहयोगियों को उन लोगों में स्पष्ट रूप से शामिल किया जिन्हें बिलदान के रूप में “लटकाना” होगा और उन्होंने कहा कि मौजूदा घटनाओं के लिए वे सभी ज़िम्मेदार हैं.
पोस्ट में एक कैप्शन और वीडियो पर ओवरले टेक्स्ट शामिल है जिन्हें भी उर्दू में लिखा गया है. इनमें भी सरकारी अधिकारियों को लटकाने संबंधी राजनेता के भाषण को दोहराया गया है. कैप्शन में संसद में भाषण पर हुई तीखी प्रतिक्रिया का भी ज़िक्र है.
कंटेंट को लगभग 20,000 बार शेयर किया गया है, उस पर 3,000 कमेंट और लगभग 40,000 रिएक्शन आए हैं, जिनमें से ज़्यादातर "लाइक" हैं. जून और सितंबर 2023 के बीच, Meta के ऑटोमेटेड सिस्टमों ने इस केस के कंटेंट को 45 बार कम्युनिटी स्टैंडर्ड का संभावित रूप से उल्लंघन करने वाला पाया और उनकी रिपोर्ट बनाई जिनके कारण कंटेंट को रिव्यू के लिए भेजा गया. इनमें से दो रिपोर्ट का रिव्यू, शुरुआती ह्यूमन रिव्यूअर्स द्वारा किया गया. पहले रिव्यू में कंटेंट को उल्लंघन नहीं करने वाला पाया गया जबकि दूसरे रिव्यू में पाया गया कि उसने हिंसा और उकसावे से जुड़ी पॉलिसी का उल्लंघन किया है. चूँकि जिस अकाउंट से कंटेंट को पोस्ट किया गया था, वह क्रॉस-चेक प्रोग्राम का भाग है, इसलिए कंटेंट को दूसरे रिव्यू के लिए मार्क किया गया था और उस प्रोसेस के पूरा नहीं होने के कारण वह प्लेटफ़ॉर्म पर बना रहा. कंटेंट को अंततः पॉलिसी और विषय विशेषज्ञों को एस्केलेट किया गया जिन्होंने पाया कि उसने हिंसा और उकसावे से जुड़ी पॉलिसी का उल्लंघन नहीं किया. कंटेंट को प्लेटफ़ॉर्म पर बना रहने दिया गया. Meta ने इस केस को बोर्ड को रेफ़र किया क्योंकि राजनैतिक भाषणों के संबंध में उपयोग किए जाते समय यह केस अभिव्यक्ति और सुरक्षा की उसकी वैल्यू के बीच तनाव दर्शाता है.
इस केस में शामिल भाषण पाकिस्तान की गंभीर राजनैतिक अस्थिरता के संदर्भ में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ़्तारी के कुछ दिन बाद दिया गया था. अप्रैल 2022 में, मि. खान और सैन्य संस्थाओं के बीच कथित रूप से बढ़ते हुए तनाव के बीच पाकिस्तान के राजनैतिक विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए मि. खान को सत्ता से बेदखल कर दिया था. सत्ता में वापसी के विचार से मि. खान और उनकी पार्टी संसदीय चुनाव जल्दी करवाना चाहती थी क्योंकि नेशनल असेंबली का जनादेश मूल रूप से अगस्त 2023 में समाप्त होने वाला था.
9 मई, 2023 को इमरान खान को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ़्तार कर लिया गया. इन मामलों में उन्हें बाद में दोषी ठहराकर कई वर्ष जेल की सज़ा सुनाई गई – यह एक ऐसा कदम था जिसे कई लोग उन्हें संसदीय चुनावों में भाग लेने से रोकने के लिए उठाया गया मानते हैं. अगस्त 2023 में, राष्ट्रपति ने नेशनल असेंबली को भंग कर दिया और आगामी आम चुनावों का रास्ता साफ़ कर दिया. संविधान के अनुसार, ये चुनाव संसद भंग होने के 90 दिनों के भीतर, नवंबर में, होने थे. इस बीच एक अंतरिम कार्यवाहक सरकार ने कार्यभार संभाला और नवंबर में पाकिस्तान की चुनाव ओवरसाइड बॉडी ने चुनावों को 8 फ़रवरी, 2024 तक यह कहते हुए स्थगित कर दिया कि निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण की ज़रूरत है. इससे चुनावों को लेकर राजनैतिक अनिश्चितता बढ़ गई और मि. खान की बेदखली के बाद अंतरिम सरकार के कार्यकाल में बढ़ोतरी हो गई. दिसंबर 2023 में, Meta ने सार्वजनिक रूप से यह भी रिपोर्ट किया कि पाकिस्तान की टेलीकम्यूनिकेशन अथॉरिटी ने एक ऐसी पोस्ट की एक्सेस को प्रतिबंधित करने की रिक्वेस्ट की जिसमें सैन्य संस्था की आलोचना की गई थी.
मि. खान की गिरफ़्तारी के बाद पूरे देश में बड़ै पैमाने पर राजनैतिक विरोध प्रदर्शन हुए और सैन्य इमारतों और सार्वजनिक और निजी संपत्ति पर अप्रत्याशित हमले हुए. इन घटनाओं ने राजनेता के भाषण के लिए ज़मीन का काम किया. संयुक्त राष्ट्र ने रिपोर्ट किया कि सुरक्षा बलों के साथ झड़पों में कम से कम आठ लोग मारे गए, लगभग 1,000 लोग गिरफ़्तार हुए और सैकड़ों लोग घायल हुए. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हिंसा रोकने का आह्वान किया. स्वतंत्र मीडिया ने रिपोर्ट किया कि पूर्व प्रधानमंत्री के समर्थकों, पार्टी कार्यकर्ताओं और उनकी राजनैतिक पार्टी के सदस्यों को मई 2023 के बाद से हज़ारों की संख्या में गिरफ़्तार किया जा चुका है. इसके अलावा, पाकिस्तान की टेलीकम्यूनिकेशन अथॉरिटी ने कथित रूप से हिंसक विरोध प्रदर्शनों के दिनों में मोबाइल इंटरनेट और सोशल मीडिया की एक्सेस को प्रतिबंधित कर दिया था और पुलिस ने पत्रकारों पर हमला किया और उन्हें बंदी बनाया और साथ ही प्रदर्शनकारियों ने भी उन पर हमला किया.
वीडियो में दिखाया गया राजनेता बलूचिस्तान (पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत) की एक छोटी लेकिन प्रभावशाली राजनैतिक पार्टी का लीडर है, जो मुख्यतः क्षेत्र के लिए प्रासंगिक मुद्दों के समाधान पर फ़ोकस करती है और वे लंबे समय से पाकिस्तान सरकार द्वारा बलोच लोगों के खिलाफ़ ताकत के गलत उपयोग की आलोचना करते रहे हैं. वे अगस्त 2023 तक संसद के सदस्य रहे और पिछली दो सरकारों के सत्ताधारी गठबंधन में शामिल रहे हैं. बोर्ड ने जिन विशेषज्ञों से परामर्श किया, उनके अनुसार उनकी छवि एक संयत राजनेता की रही है और उन्होंने नागरिकों के खिलाफ़ हिंसा की पहले आलोचना की है. वे सैन्य संस्थाओं के गंभीर आलोचक रहे हैं, भले ही उनकी पार्टी सरकार के गठबंधन का भाग रही है जो इन संस्थाओं के साथ मिलकर काम करता है.
भले ही राजनेता का यह भाषण मि. खान की गिरफ़्तारी के तत्काल बाद शुरू हुई अस्थिरता के बाद आया, लेकिन राजनेता ने पाकिस्तान और बलूचिस्तान में व्यापक सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों का हवाला दिया. बोर्ड ने जिन विशेषज्ञों से परामर्श किया, उन्होंने कहा कि पाकिस्तान गंभीर स्तर के राजनैतिक ध्रुवीकरण का सामना कर रहा है जिसमें मि. खान, सरकार और सैन्य संस्थाओं के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव ने आग में घी की तरह काम किया. सैन्य संस्थाओं, जो शुरुआत में मि. खान की समर्थक थीं, का पाकिस्तान में महत्वपूर्ण राजनैतिक प्रभाव है और वे सार्वजनिक आलोचना की आदी नहीं हैं. हालाँकि, मि. खान और उनके समर्थकों की कड़ी धरपकड़ से सेना विरोधी भावनाएँ गहरी होती जा रही हैं.
विशेषज्ञों ने आगे नोट किया कि भाषण के दो दिन पहले, बलूचिस्तान में सुरक्षा बलों पर हमले भी हुए, जो भाषण के परिणाम हो सकते हैं. बलूचिस्तान में ऐतिहासिक रूप से बड़े स्तर के राजनैतिक और नागरिक समाज आंदोलन होते रहे हैं जिनमें ज़्यादा राजनैतिक स्वायत्तता और सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की माँग की जाती रही है – हालाँकि, बलूचिस्तान में अधिकार बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे कठोर दमन से एक ज़्यादा उग्र सशस्त्र पृथकतावादी आंदोलन का जन्म हुआ है.
बलूचिस्तान दशकों से राजनैतिक हिंसा से पीड़ित रहा है, जिसकी स्थिति सेना द्वारा दमन और मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन जैसे लोगों को बलपूर्वक गायब कर देना और बिना कारण हत्याएँ कर देना, सुरक्षा बलों द्वारा अपनाई जा रही सामान्य रणनीतियों और पृथकतावादी आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए सरकार द्वारा स्पॉन्सर्ड निजी लड़ाकों की मौजूदगी से और भी बुरी हुई है. विशेषज्ञों ने नोट किया कि सक्रिय पृथकतावादी आंदोलन और बार-बार होने वाले आतंकवादी हमलों के कारण बलूचिस्तान में पाकिस्तान के सैन्य बलों की भारी मौजूदगी रही है. उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सेना ने हिंसक लड़ाके तैयार किए हैं, जिनका कथित रूप से उद्देश्य उस बलूच आबादी के सदस्यों को टार्गेट करना है जो संदिग्ध रूप से पृथकतावादी आंदलोन से जुड़े हुए हैं. इनमें से कुछ लड़ाके बाद में सेना के खिलाफ़ खड़े हो गए, जिससे पृथकतावादी भावनाएँ और हिंसा ज़्यादा भड़क गई.
आर्थिक समस्याओं, 2022 की विनाशकारी बाढ़ के जारी दुष्परिणाम और बलूचिस्तान और अन्य जगहों पर आतंकवादी कृत्यों में बढ़ोतरी से पाकिस्तान का राजनैतिक संकट और भी गहरा गया है. इन्हीं के साथ आतंकवाद से निपटने के दंडात्मक उपाय भी जुड़ गए हैं, जिनमें बलूचिस्तान में लोगों को बलपूर्वक गायब करना और फिदायीन समूह शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी हमलों की बार-बार आलोचना की जाती रही है, जबकि अन्य मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आतंकवाद से निपटने के लिए अपमानजनक उपाय अपनाने के खिलाफ़ अपनी चिंताएँ दोहराई हैं.
इस संदर्भ में, राजनेता ने अपने भाषण में कई भड़काऊ और उदाहरणात्मक शब्दों का उपयोग किया जो पाकिस्तान के राजनैतिक इतिहास और वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य के लिए प्रासंगिक हैं. इनमें ऐसे रेफ़रेंस शामिल हैं जिनमें सरकार और सेना की पॉलिसीज़ की आलोचना की गई है. साथ ही इन संस्थाओं के सरकारी अधिकारियों के बीच जवाबदेही की कमी की भी आलोचना की गई है. साथ ही, भाषण में बलूच कम्युनिटी के खिलाफ़ हिंसा और न्याय पाने के लिए उनके संघर्ष की भी बात की गई है.
बोर्ड ने जिन भाषाई और सांस्कृतिक विशेषज्ञों से परामर्श किया, उन्होंने नोट किया कि पाकिस्तान की राजनैतिक संस्कृति में उन मुद्दों की ओर ध्यान खींचने के लिए अत्यंत आक्रामक भड़काऊ भाषा का उपयोग किया जाता है जिन्हें महत्वपूर्ण माना जाता है. उन्होंने कहा कि राजनेता के भाषण में जिस “परंपरा” का उल्लेख किया गया है, वह नील नदी की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए प्राचीन मिस्र में बलिदान की प्रथाओं का एक मिथक है. इस संदर्भ में, राजनेता ने उन लोगों के “बलिदान” की बात कही है जो राजनैतिक संकट के लिए ज़िम्मेदार हैं. विशेषज्ञों ने नोट किया कि “बाढ़” को रोकने की ज़रूरत, देश की राजनैतिक समस्याओं को रोकने (राष्ट्रीय रूप से और बलूचिस्तान में) या सामाजिक असमानताओं से उपजी अशांति का समाधान करने का प्रतीक हो सकती है.
इसके अलावा, राजनेता ने अपने भाषण में “फ्रैंकनस्टाइन” और अन्य “राक्षसों” का उल्लेख किया. विशेषज्ञों ने नोट किया कि ये रेफ़रेंस इस बारे में हो सकते हैं कि पाकिस्तान सरकार ने किस तरह आतंकी समूहों जैसे हिंसा करने वाले लोगों को तैयार किया है जिनका उद्देश्य देश के हितों की रक्षा करना था लेकिन अंत में वे उनके ही खिलाफ़ खड़े हो गए और देश खतरे में आ गया – यह समस्या खास तौर पर बलूचिस्तान पर असर डालती है.
पाकिस्तान में 8 फ़रवरी, 2024 को संसदीय चुनाव हुए. इस केस में जिस राजनेता का भाषण शामिल किया गया है, उन्होंने फिर से चुनाव जीतकर नेशनल असेंबली में अपनी सीट पक्की की. जब यह भाषण दिया गया था, तब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सत्ता से बेदखली और गिरफ़्तारी के कारण पाकिस्तान में राजनैतिक तनाव अपने चरम पर था. फ़िलहाल जेल में कई वर्षों की सज़ा काट रहे मि. खान को उनकी पार्टी सहित संसदीय चुनावों में भाग लेने से रोक दिया गया. उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए बाध्य किया गया. बोर्ड ने जिन विशेषज्ञों से परामर्श किया, उनके अनुसार कई पर्यवेक्षकों ने यह आरोप लगाया है कि संस्थाओं ने मि. खान की राजनैतिक पार्टी की सत्ता में वापसी का विरोध किया है. अन्य पर्यवेक्षक भी यह मानते हैं कि इमरान खान के खिलाफ़ भले ही आरोप कानूनन लगाए गए हैं, लेकिन इस काम के लिए चुना गया समय राजनीति से प्रेरित हो सकता है.
पाकिस्तान हमेशा से अशांति का देश बना रहा है. पाकिस्तान के चुनाव निर्णायक नहीं रहे और उसमें किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, नतीजतन मि. खान की दो प्रमुख विरोधी पार्टियों ने एक औपचारिक समझौता करके गठबंधन सरकार बनाने का फ़ैसला किया. वोटों की हेराफेरी के आरोपों से स्थिति और भी जटिल हो गई है.
मानवाधिकार के व्यापक संदर्भ में, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों और नागरिक अधिकार संगठनों ने हाइलाइट किया है कि इमरान खान की पुरानी सरकार, वर्तमान शासन और सैन्य संस्था, सभी ने हाल ही के वर्षों में मीडिया की आज़ादी का दमन किया है. मीडिया आउटलेट्स के मामलों में हस्तक्षेप किया जा रहा है, उनसे सरकारी विज्ञापन वापस लिए जा रहे हैं, टेलीविज़न प्रस्तोताओं और कंटेंट ब्रॉडकास्ट करने पर बैन लगाया जा रहा है. देश के एक प्रमुख प्राइवेट न्यूज़ चैनल का लाइसेंस भी सस्पेंड कर दिया गया था. इसी तरह, ऑनलाइन कार्यकर्ता, असंतुष्ट लोग और पत्रकारों को सरकार और उनके समर्थकों द्वारा धमकियाँ दी जाती हैं और उनका उत्पीड़न किया जाता है, जिनमें सैन्य संस्था और सरकार की आलोचना करने पर हिंसा और बलपूर्वक गायब करने के कुछ मामले शामिल हैं. लैंगिक समानता से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने की माँग करने वाले महिला अधिकार आंदोलनों को परमिट देने से इंकार कर दिया गया और उनके जुलूसों को बैन करने की कोशिशों के तहत कोर्ट में यह कहते हुए याचिकाएँ लगाई गईं कि लोगों और धार्मिक संगठनों को इससे आपत्ति है और इससे जाहिर तौर पर कानून और व्यवस्था से जुड़े जोखिम उत्पन्न होते हैं. इन संगठनों ने यह भी रिपोर्ट किया कि पाकिस्तान सरकार ने इंटरनेट से जुड़ी उनकी आज़ादी पर भी प्रतिबंध लगाए. ज़रूरी ऑनलाइन अभिव्यक्ति को दबाने के लिए अधिकारी नियमित रूप से इंटरनेट की पाबंदी, प्लेटफ़ॉर्म को ब्लॉक करने और कठोर मुकदमे चलाने जैसे काम करते रहते हैं. स्वतंत्र मीडिया आउटलेट ने यह भी डॉक्यूमेंट किया है कि किस तरह पाकिस्तानी सरकार, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से कंटेंट को हटाने की रिक्वेस्ट करती है, खास तौर पर जब उस कंटेंट में मानवाधिकारों के उल्लंघन और राजनीति में सैन्य संस्थाओं के शामिल होने से जुड़े सवाल उठाए गए हों. Meta ने बोर्ड को बताया कि उसने पाकिस्तान द्वारा स्थानीय कानूनों का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए रिपोर्ट किए गए हज़ारों कंटेंट की स्थानीय एक्सेस प्रतिबंधित की. इस जानकारी को कंपनी के ट्रांसपेरेंसी सेंटर में भी रिपोर्ट किया गया है.
3. ओवरसाइट बोर्ड की अथॉरिटी और स्कोप
बोर्ड के पास उन फ़ैसलों को रिव्यू करने का अधिकार है, जिन्हें Meta रिव्यू के लिए सबमिट करता है (चार्टर अनुच्छेद 2, सेक्शन 1; उपनियम अनुच्छेद 2, सेक्शन 2.1.1).
बोर्ड, Meta के फ़ैसले को कायम रख सकता है या उसे बदल सकता है (चार्टर अनुच्छेद 3, सेक्शन 5) और उसका फ़ैसला कंपनी पर बाध्यकारी होता है (चार्टर अनुच्छेद 4). Meta को मिलते-जुलते संदर्भ वाले समान कंटेंट पर अपने फ़ैसले को लागू करने की संभावना का भी आकलन करना चाहिए (चार्टर अनुच्छेद 4). बोर्ड के फ़ैसलों में गैर-बाध्यकारी सलाह शामिल हो सकती हैं, जिन पर Meta को जवाब देना ज़रूरी है (चार्टर अनुच्छेद 3, सेक्शन 4; अनुच्छेद 4). जहाँ Meta, सुझावों पर एक्शन लेने की प्रतिबद्धता व्यक्त करता है, वहाँ बोर्ड उनके क्रियान्वयन की निगरानी करता है.
4.अथॉरिटी और मार्गदर्शन के सोर्स
इस केस में बोर्ड ने इन स्टैंडर्ड और पुराने फ़ैसलों को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण किया:
I.
- न्यूज़ रिपोर्टिंग में तालिबान का उल्लेख
- रूसी कविता
- ईरान में विरोध प्रदर्शन का स्लोगन
- ब्राज़ील के जनरल का भाषण
- कंबोडियाई प्रधानमंत्री
- तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव से पहले हुआ राजनैतिक विवाद
- क्यूबा में महिलाओं से विरोध प्रदर्शन का आह्वान
- भारत के ओडिशा राज्य में सांप्रदायिक दंगे
- ईरानी महिला से सड़क पर हुज्जत
II. Meta की कंटेंट पॉलिसीज़
बोर्ड का विश्लेषण, Meta की अभिव्यक्ति की प्रतिबद्धता, जिसे कंपनी “सर्वोपरि” बताती है, और सुरक्षा की उसकी वैल्यू के आधार पर किया गया था.
मई 2023 में जब कंटेंट को पोस्ट किया गया था, तब से हिंसा और उकसावे से जुड़े Meta के कम्युनिटी स्टैंडर्ड को कई बार अपडेट किया जा चुका है. बोर्ड ने हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के सबसे नए वर्जन के आधार पर कंटेंट का विश्लेषण किया, जो 6 दिसंबर, 2023 को प्रभावी हुआ है.
हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के पॉलिसी बनाने के कारण में कहा गया है कि उसका “उद्देश्य ऐसी संभावित ऑफ़लाइन हिंसा को रोकना है जो Meta के प्लेटफ़ॉर्म पर दिखाई दे रहे कंटेंट के संबंधित हो सकता है" और यह कि Meta “जानता है कि लोग आम तौर पर छोटी-मोटी और अनौपचारिक रूप से धमकी देकर या हिंसा करने की बात कहकर तिरस्कार करते हैं या असहमति जताते हैं, फिर भी [यह कंपनी] ऐसी बातों से जुड़े कंटेंट को हटा देती है जो हिंसा भड़काती हैं या उसे बढ़ावा देती हैं और जो लोगों की या निजी सुरक्षा को प्रामाणिक धमकियाँ होती हैं." पॉलिसी बनाने के कारण में कहा गया है कि “संदर्भ महत्वपूर्ण होता है, इसलिए [Meta] हिंसक धमकियों के कई कारकों पर विचार करता है जैसे निंदा करना या जागरूकता फैलाना […] या धमकियों का लोगों को दिखाई देना और टार्गेट की संवेदनशीलता.” Meta “ऐसे कंटेंट को हटा देता है, अकाउंट को बंद कर देता है और कानून लागू करने वाली संस्था के साथ मिलकर काम करता है जब कंपनी को लगता है कि जान-माल के नुकसान का प्रामाणिक जोखिम है या जब लोगों की सुरक्षा को सीधा खतरा है.”
पॉलिसी खास तौर पर “हिंसा की ऐसी धमकियों को प्रतिबंधित करती है, जिनसे किसी की जान जा सकती है (या अन्य तरह की बहुत गंभीर हिंसा हो सकती है).” पॉलिसी में यह बताया गया है कि “हिंसा की धमकियाँ ऐसे कथन या विज़ुअल होते हैं जिनमें किसी टार्गेट पर हिंसा का इरादा, महत्वाकांक्षा या आह्वान होता है और धमकियों को कई तरह कथनों में व्यक्त किया जा सकता है जैसे इरादे का कथन, कार्रवाई का आह्वान, तरफ़दारी, महत्वाकांक्षापूर्ण कथन और सशर्त कथन.” 6 दिसंबर, 2023 के ताज़ा पॉलिसी अपडेट के बाद, कम्युनिटी स्टैंडर्ड की लोगों को दिखाई देने वाली भाषा में अब यह भी स्पष्ट किया गया है कि Meta “उन धमकियों को प्रतिबंधित नहीं करता जिन्हें जागरूकता फैलाने या निंदा करने के संदर्भ में शेयर किया जाता है.” यह काम रूसी कविता केस में बोर्ड के सुझाव के जवाब में किया गया है.
III. Meta की मानवाधिकारों से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ
बिज़नेस और मानवाधिकारों के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ के मार्गदर्शक सिद्धांत (UNGP), जिन्हें 2011 में संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार समिति ने स्वीकृति दी है, प्राइवेट बिज़नेस की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों का स्वैच्छिक ढाँचा तैयार करते हैं. 2021 में Meta ने मानवाधिकारों से जुड़ी अपनी कॉर्पोरेट पॉलिसी की घोषणा की, जिसमें उसने UNGP के अनुसार मानवाधिकारों का ध्यान रखने की कंपनी की प्रतिबद्धता दोहराई.
इस केस में Meta की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के बोर्ड द्वारा विश्लेषण में नीचे दिए गए अंतरराष्ट्रीय स्टैंडर्ड प्रासंगिक थे:
- अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार: अनुच्छेद 19, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र ( ICCPR), सामान्य कमेंट सं. 34, मानवाधिकार समिति, 2011; विचार और अभिव्यक्ति की आज़ादी के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ का खास रैपर्टर, रिपोर्ट: A/HRC/38/35 (2018) और A/HRC/50/29 (2022). मीडिया की आज़ादी और लोकतंत्र पर संयुक्त घोषणा, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय आदेशपत्र (2023); राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर संयुक्त घोषणापत्र, संयुक्त राष्ट्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर क्षेत्रीय आदेशपत्र (2021).
- जीवन का अधिकार: अनुच्छेद 6, ICCPR.
- व्यक्ति की आज़ादी और सुरक्षा का अधिकार: अनुच्छेद 9, ICCPR, सामान्य कमेंट सं. 35, मानवाधिकार समिति 2014.
5. यूज़र सबमिशन
Meta के रेफ़रल और बोर्ड द्वारा केस स्वीकार करने के फ़ैसले के बाद, यूज़र को बोर्ड के रिव्यू की सूचना का मैसेज भेजा गया और उन्हें बोर्ड के सामने बयान देने का मौका दिया गया. यूज़र ने कोई बयान नहीं दिया.
6. Meta के सबमिशन
जब Meta ने कंटेंट का रिव्यू किया, तो कंपनी ने पाया कि उसने हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं किया (पॉलिसी के उस वर्जन के आधार पर जो कंटेंट के रिव्यू के समय प्रभावी था) क्योंकि इसे एक न्यूज़ आउटलेट द्वारा राजनेता के भाषण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए पोस्ट किया गया था.
Meta ने कहा कि कंपनी “ऐसे कथनों को हटा देती है जो बहुत गंभीर हिंसा का समर्थन करते हैं” जैसे लोगों को सार्वजनिक रूप से फाँसी देने का आह्वान करना, लेकिन कंपनी तब ऐसे कंटेंट को परमिशन देती है जब उसे जागरूकता फैलाने के संदर्भ में शेयर किया गया हो. कंपनी ने कहा कि इस केस में कंटेंट को एक मीडिया आउटलेट द्वारा जागरूकता फैलाने के संदर्भ में शेयर किया गया था और इसलिए वह कम्युनिटी स्टैंडर्ड के अपवाद के तहत आता है. जब किसी कथन में प्रामाणिक धमकी भी शामिल हो, तब भी Meta ऐसे कंटेंट को परमिशन देता है अगर उससे दूसरे लोगों तक जानकारी पहुँचती हो. अपनी पुरानी आंतरिक परिभाषा का उल्लेख करते हुए, Meta ने बताया कि यह अपवाद “खास तौर पर उस कंटेंट पर लागू होता है जिसमें किसी खास विषय या मुद्दे के बारे में अन्य लोगों को स्पष्ट रूप से सूचित और शिक्षित किया जाता हो (….). इसमें शैक्षणिक और मीडिया रिपोर्ट शामिल हो सकती हैं.” आंतरिक परिभाषा को “जागरूकता फैलाने” की नई परिभाषा के अनुसार अपडेट किया गया है (जैसा कि नीचे सेक्शन 8.1 में उल्लेख किया गया है).
कंपनी ने नोट किया कि पोस्ट को “समग्र रूप से” देखे जाने पर उसने पाया कि कंटेंट को न्यूज़ एजेंसी द्वारा “एक राजनेता द्वारा सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर दिए गए बयानों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए” पोस्ट किया गया था. Meta ने पाया कि पोस्ट ने राजनेता के भाषण के सिर्फ़ उस हिस्से को शेयर नहीं किया जिसमें बहुत गंभीर हिंसा का आह्वान था बल्कि उसने भाषण का दस मिनट का वीडियो शेयर किया जिससे भाषण का बेहतर संदर्भ पता चलता है. Meta ने इस बात पर भी विचार किया कि पोस्ट में न्यूज़ एजेंसी के कैप्शन से किसी खास मैसेज का समर्थन या तरफ़दारी नहीं होती, बल्कि उससे राजनेता के कमेंट्स का संपादकीयकरण होता है जो बताता है कि भाषण ज़ोरदार और असरदार था. इसके अलावा कंपनी ने नोट किया कि न्यूज़ आउटलेट, वीडियो में शामिल राजनेता या सरकार से संबद्ध नहीं है और उसने पहले कभी ऐसा कंटेंट पोस्ट नहीं किया जिससे हिंसा भड़कती हो.
Meta ने आगे बताया कि भले ही कंटेंट में प्रामाणिक खतरा मौजूद हो और वह “जागरूकता फैलाने” से जुड़ी छूट के तहत नहीं आता हो, उसे फिर भी ख़बरों में रहने लायक होने के आधार पर परमिशन दी जाती. Meta ने कहा कि "कुछ मामलों में, कंपनी ऐसे कंटेंट को परमिशन देती है जो वैसे तो हमारे स्टैंडर्ड के अनुसार नहीं होता, लेकिन जो ख़बरों में रहने लायक और जनहित में होता है."
Meta ने तर्क दिया कि इस केस में जनहित वैल्यू ज़्यादा थी क्योंकि भाषण एक सार्वजनिक मंच पर दिया गया था और उसमें प्रासंगिक मुद्दों पर बात की गई थी. कंटेंट को प्रतिष्ठित न्यूज़ संगठनों द्वारा ब्रॉडकास्ट भी किया गया था और मूल रूप से उसे सार्वजनिक रूप से ब्रॉडकास्ट किया गया था. Meta ने यह विचार किया कि नुकसान का जोखिम कम था क्योंकि सरसरी तौर पर देखे जाने पर भाषण में हिंसक काम करने का आह्वान किया गया था, लेकिन अगर व्यापक राजनैतिक संदर्भ में देखा जाए तो ये बातें “अलंकारपूर्ण लगती हैं” और “ऐसा कोई संकेत मौजूद नहीं है कि पोस्ट से हिंसा या नुकसान हो सकता है” क्योंकि पोस्ट “बिना किसी ज्ञात घटना के” प्लेटफ़ॉर्म पर बनी हुई है.
कंपनी ने आगे नोट किया कि भले ही इस केस में जागरूकता फैलाने से जुड़ा अपवाद लागू था, खुद भाषण में भी कोई प्रामाणिक धमकी शामिल नहीं थी. कंपनी ने कहा कि वीडियो में शामिल राजनेता का भाषण, “बहुत गंभीर हिंसा की तरफ़दारी नहीं करता” क्योंकि उसमें कोई “प्रामाणिक खतरा” मौजूद नहीं है. इसके बजाय, इसे एक “प्रतीकात्मक भाषण समझा जाना चाहिए ... जिसका उद्देश्य राजनैतिक बात कहना है.” Meta ने बताया कि शुरुआत में कंटेंट का रिव्यू करते समय प्रामाणिक और अप्राभाणिक धमकियों के बीच अंतर करना कठिन हो सकता है. इस केस में, यह आकलन एस्केलेशन के बाद किया गया कि कंटेंट में कोई प्रामाणिक धमकी शामिल नहीं थी बल्कि वह एक “राजनैतिक प्रतीक” था, जिसका अर्थ है कि यह आकलन Meta की आंतरिक विशेषज्ञों की टीमों द्वारा किया गया था. ये टीमें “हिंसा की तरफ़दारी करने और ज़ोरदार प्रतीकात्मक भाषा” के बीच अंतर करने के लिए संदर्भ पर गहराई से विचार करती हैं.
यह धमकी “प्रतीकात्मक” थी क्योंकि राजनेता ने इसका उपयोग मिस्र में बलिदान के एक प्राचीन मिथक और अनाम राजनेताओं, जनरल, नौकरशाहों और जजों को फाँसी देने की तरफ़दारी करने के बीच तुलना करने के लिए किया. Meta के अनुसार, यह “सुझाता है कि यह एक वास्तविक धमकी के बजाय एक राजनैतिक अतिशयोक्ति है.” राजनेता के भाषण में “भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, बलोच लोगों के खिलाफ़ कथित भेदभाव” और “पाकिस्तान के इतिहास में सैन्य संस्थाओं के सदस्यों के लिए जवाबदेही में कमी” से जुड़ी चिंताएँ भी हाइलाइट की गई थीं Meta के अनुसार, बहुत गंभीर हिंसा करने के उनके कमेंट्स को “इस व्यापक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए देखा जाना चाहिए.”
बोर्ड ने Meta से 18 लिखित सवाल पूछे. सवाल Meta के ऑटोमेटेड और ह्यूमन एन्फ़ोर्समेंट; एस्केलेशन के समय लागू होने वाली Meta की पॉलिसी; हिंसा और उकसावे से जुड़ी पॉलिसी के ताज़ा अपडेड और कंटेंट मॉडरेटर्स के लिए आंतरिक निर्देश; सरकार की रिक्वेस्ट में रिव्यू किए जाने वाले कंटेंट के लिए प्रोसेस; 2024 के आने वाले चुनाव की दृष्टि से Meta द्वारा उठाए गए कदम; और राजनेताओं और उम्मीदवारों की सुरक्षा के लिए गए कदमों के साथ-साथ पाकिस्तानी सरकार के साथ Meta द्वारा स्थापित कम्यूनिकेशन से संबंधित थे. Meta ने बोर्ड द्वारा पूछे गए सभी सवालों के जवाब दिए. Meta ने बोर्ड को बताया कि वह पिछले एक वर्ष में पाकिस्तान सरकार द्वारा उसे कंटेंट हटाने के लिए प्राप्त रिक्वेस्ट की पूरी जानकारी देने में असमर्थ है क्योंकि इसके लिए डेटा सत्यापन की ज़रूरत होगी, जिसे समय से पूरा नहीं किया जा सकता.
7.पब्लिक कमेंट
ओवरसाइट बोर्ड को तीन ऐसे पब्लिक कमेंट मिले जो सबमिशन की शर्तें पूरी करते हैं. एक कमेंट अमेरिका और कनाडा से, एक कमेंट एशिया पैसिफ़िक और ओशियानिया से और एक कमेंट मध्य और दक्षिण एशिया से सबमिट किया गया था. प्रकाशन की सहमति के साथ सबमिट किए गए पब्लिक कमेंट पढ़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करें.
सबमिशन में इन विषयों पर बात की गई थी: सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स की भूमिका और पत्रकारों के अलावा अन्य एंटिटी द्वारा न्यूज़ रिपोर्टिंग में बढ़ोतरी; पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर हिंसक राजनैतिक बयानों के परमिशन देने से जुड़े संभावित जोखिम; देश में राजनीति और मानवाधिकारों की स्थिति; अभिव्यक्ति की आज़ादी, मीडिया की आज़ादी और उन खास कानूनों को हाइलाइट करना जो प्रेस की आज़ादी के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न करते हैं.
8.ओवरसाइट बोर्ड का विश्लेषण
बोर्ड ने Meta की कंटेंट पॉलिसी, मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों और वैल्यू के तहत कंपनी द्वारा कंटेंट को बनाए रखने के फ़ैसले का परीक्षण किया.
बोर्ड ने इस केस का चयन इसलिए किया क्योंकि इससे उसे राजनैतिक भाषणों के संदर्भ में हिंसा और उकसावे से जुड़ी Meta की पॉलिसी के साथ-साथ संबंधित एन्फ़ोर्समेंट प्रोसेस को एक्सप्लोर करने का अवसर मिला. इससे ये प्रासंगिक सवाल उठते हैं कि Meta को अपने प्लेटफ़ॉर्म्स पर राजनेताओं के भाषण और उस भाषण से संबंधित किसी भी न्यूज़ कवरेज से कैसा व्यवहार करना चाहिए, खास तौर पर चुनावों से पहले. यह केस, पत्रकारिता की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों और जनहित के मुद्दों, घटनाओं या विषयों की रिपोर्ट करने वाले न्यूज़ आउटलेट के महत्व को सीधे एक्सप्लोर करने का अवसर देता है.
इसके अलावा, यह केस Meta की उन आंतरिक प्रक्रियाओं की चर्चा करने का अवसर देता है जब धमकी वाले बयानों को शाब्दिक अर्थों में समझने के बजाय प्रतीकात्मक माना जाना चाहिए. यह केस मुख्य रूप से बोर्ड की चुनाव और नागरिक स्थान संबंधी रणनीतिक प्राथमिकता के तहत आता है.
8.1 Meta की कंटेंट पॉलिसी का अनुपालन
बोर्ड ने पाया कि इस केस का कंटेंट, हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं करता क्योंकि, इस बात पर ध्यान दिए बगैर कि अंतर्निहित कंटेंट उकसावे की सीमा में आता है, इसे एक मीडिया आउटलेट द्वारा शेयर किया गया था जो दूसरे लोगों तक जानकारी पहुँचाना चाहता है और इसलिए यह कंटेंट जागरूकता फैलाने से जुड़े अपवाद में आता है.
जब कंटेंट को पोस्ट किया गया था, तब “जागरूकता फैलाने” संबंधी Meta का अपवाद सिर्फ़ रिव्यूअर्स को दी जाने वाली उसकी आंतरिक गाइडलाइन में शामिल था और वह लोगों को दिखाई देने वाले कम्युनिटी स्टैंडर्ड में शामिल नहीं था – इसमें “उल्लंघन करने वाले कंटेंट को तब परमिशन दी गई थी जब उसे निंदा करने या जागरूकता फैलाने के संदर्भ में शेयर किया गया हो.” इसमें जागरूकता फैलाने वाले संदर्भ को “ऐसे कंटेंट के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें किसी खास विषय या मुद्दे के बारे में अन्य लोगों को स्पष्ट रूप से सूचित और शिक्षित किया गया हो” जिनमें मीडिया रिपोर्ट्स शामिल हो सकती हैं. 6 दिसंबर, 2023 को कम्युनिटी स्टैंडर्ड की लोगों को दिखाई देने वाली भाषा में ताज़ा अपडेट के बाद, अब यह पॉलिसी स्पष्ट रूप से यह अपवाद दिखाती है: “Meta उन धमकियों को प्रतिबंधित नहीं करता जिन्हें जागरूकता फैलाने या निंदा करने के संदर्भ में शेयर किया जाता है.” यह अपडेट रूसी कविता केस में बोर्ड के सुझाव के जवाब में किया गया है.
Meta ने जागरूकता फैलाने संबंधी अपने आंतरिक स्टैंडर्ड को भी विस्तार से अपडेट किया है जो इस प्रकार है: “नई जानकारी को शेयर करना, उसकी चर्चा करना या उसकी रिपोर्ट करना ... जनहित वैल्यू के किसी मुद्दे की समझ या विषय की जानकारी बढ़ाने के लिए. जागरूकता फैलाना … इसका उद्देश्य हिंसा भड़काना या नफ़रत या गलत जानकारी फैलाना नहीं होना चाहिए. इसमें नागरिक पत्रकारिता और नियमित यूज़र्स द्वारा न्यूज़ रिपोर्ट्स को शेयर करना शामिल है, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं है. Meta ने बताया कि “न्यूज़ रिपोर्टिंग,” कंटेंट की ऐसी व्यापक कैटेगरी में आती है जिसे जागरूकता फैलाने के लिए शेयर किया जाता है.
इस केस में, ऐसे कई स्पष्ट संकेत थे जो बताते हैं कि कंटेंट पर जागरूकता फैलाने से जुड़ा अपवाद लागू होता है. इसे एक न्यूज़ आउटलेट द्वारा पोस्ट किया गया था और इसमें एक राजनेता को दिखाया गया था जो चुनावों के पहले पाकिस्तान में सामाजिक और राजनैतिक स्थिति की बात कर रहा है. भाषण में निसंदेह रूप से जनहित के मामलों, चिंताजनक घटनाओं और सार्वजनिक और राजनैतिक क्षेत्र की हस्तियों की बात की गई थी. वीडियो में राजनेता के व्यापक भाषण के संदर्भ में अधिकारियों को “लटकाने” का आह्वान दिखाया गया है, जो कथनों को एक व्यापक संदर्भ में प्रस्तुत करता है और जनहित के अन्य मुद्दों को हाइलाइट करता है. पोस्ट में राजनेता के मैसेज और कैप्शन का समर्थन या तरफ़दारी नहीं की गई है, यह देखते हुए कि भाषण पर तीव्र प्रतिक्रिया हुई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि राजनेता के भाषण के कंटेंट को जागरूकता फैलाने के लिए शेयर किया गया है.
यद्यपि इस केस के कंटेंट को जागरूकता फैलाने से जुड़े अपवाद का फ़ायदा मिलता है, बोर्ड ने आगे नोट किया कि संदर्भ पर विचार करने से यह पता चलता है कि इसमें ऐसी हिंसा का कोई “प्रामाणिक खतरा” नहीं है “जिससे किसी व्यक्ति की जान जा सकती हो” और जिससे हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन होता है. बोर्ड ने यह हाइलाइट किया कि कुछ बातों से यह स्पष्ट हो सकता है कि क्या किसी भाषण को प्रतीकात्मक या गैर-शाब्दिक माना जा सकता है, न कि प्रामाणिक खतरा. चुनावों से पहले राजनैतिक प्रकृति के बयानों में यह अंतर खास तौर पर महत्वपूर्ण होता है.
बोर्ड इस बात को समझता है कि राजनेताओं के ऐसे बयानों को हटा दिया जाना चाहिए जिनसे हिंसा भड़कने की आशंका हो, अगर ऐसे बयानों में विशिष्ट और प्रामाणिक खतरे और टार्गेट मौजूद हों (जैसे कि कंबोडियाई प्रधानमंत्री हुन सेन देखें), लेकिन बोर्ड ने इस पॉलिसी को लागू करते समय संदर्भ से जुड़े आकलनों का महत्व दोहराया. अगर प्रामाणिक खतरा मौजूद नहीं है, भाषण में धमकी वाली भाषा का प्रतीकात्मक रूप से उपयोग किया गया है या शाब्दिक रूप से उपयोग नहीं किया गया है, तो उसे हिंसा और उकसावे से जुड़ी पॉलिसी का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए (रूसी कविता, ईरान में विरोध प्रदर्शन का स्लोगन और ईरानी महिला से सड़क पर हुज्जत फ़ैसले देखें).
इस केस में, कंटेंट एक न्यूज़ रिपोर्ट है जिसमें एक राजनेता को पाकिस्तान में सामाजिक और राजनैतिक स्थिति पर अपने विचार देते हुए दिखाया गया है. संदर्भ और भाषा और संस्कृति के विशेषज्ञों के परामर्श को देखते हुए, बोर्ड यह मानता है कि राजनेता ने प्रतीकात्मक भाषा का उपयोग किया है और उसमें हिंसा का शाब्दिक और प्रामाणिक खतरा नहीं है. राजनेता ने पाकिस्तान के राजनैतिक संकट की आलोचना करने के लिए उदाहरणात्मक भाषा और ऐतिहासिक रेफ़रेंस का उपयोग किया है. बोर्ड, Meta की इस बात से सहमत है कि अधिकारियों की हत्या करने और नील नदी की बाढ़ को रोकने के लिए बलिदान देने के प्राचीन मिथक के बीच लाक्षणिक तुलना, एक वास्तविक धमकी के बजाय राजनैतिक अतिशयोक्ति की अभिव्यक्ति है. बोर्ड ने जिन विशेषज्ञों से परामर्श किया, उन्होंने पाकिस्तान के राजनेता जिन मुद्दों को महत्वपूर्ण मानते हैं, उनकी ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिए वे अक्सर अत्यंत आक्रामक और भड़काऊ भाषा का उपयोग करते हैं और यह कि संसद में वे अपने भाषणों में जान-बूझकर उत्तेजक और अतिशयोक्तिपूर्ण भाषा का उपयोग करते हैं. बोर्ड मानता है कि चुनावों के पहले ऐसे भाषण की सुरक्षा करना, जो प्रतीकात्मक (गैर-शाब्दिक) है, बुनियादी ज़रूरत है. इसके अलावा, राजनेता के भाषण में भ्रष्टाचार, कथित भेदभाव और बलूच लोगों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात कही गई है जो न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं. साथ ही देश के इतिहास में सरकारी अधिकारियों और सैन्य संस्थाओं की जवाबदेही में कमी भी बात भी कही गई है. कंबोडियाई प्रधानमंत्री हुन सेन केस के विपरीत, इस केस में राजनेता ने किसी खास टार्गेट का नाम नहीं लिया है (उन्होंने सरकारी अधिकारियों की सामान्य कैटेगरी की बात कही है), उन्होंने खुद को टार्गेट की गई कैटेगरी में शामिल किया है और उनका हिंसा भड़काने का कोई इतिहास नहीं रहा है. प्रासंगिक संदर्भ नीचे सेक्शन 8.2 में बताया गया है.
संदर्भ में, कथनों को इसलिए कॉल टू एक्शन, अलार्म की अभिव्यक्ति और दोषारोपण माना जाना चाहिए, न कि उसे लोगों के लिए धमकी माना जाना चाहिए. ईरान में विरोध प्रदर्शन का स्लोगन और रूसी कविता केस में शामिल कंटेंट की तरह, उन्हें राजनैतिक मैसेज देने के लिए प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति मानना बेहतर है, न कि प्रामाणिक खतरा.
बोर्ड ने यह माना कि इस केस का कंटेंट स्पष्ट रूप से पॉलिसी का उल्लंघन नहीं करता, लेकिन प्रतीकात्मक रूप से धमकी वाली भाषा का उपयोग करने वाले कथनों, या ऐसे कथनों जो शाब्दिक नहीं हैं, और प्रामाणिक खतरों के बीत अंतर करने के लिए संदर्भ की ज़रूरत होती है और शुरुआत में ऐसा करना कठिन हो सकता है. जैसा कि बोर्ड ने पहले कहा है कि इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि Meta अपने रिव्यूअर्स को इस बारे में सटीक मार्गदर्शन दे कि संभावित रूप से प्रतीकात्मक भाषा को मॉडरेट करते समय किन कारकों पर विचार किया जाना चाहिए (ईरान में विरोध प्रदर्शन का स्लोगन केस में सुझाव सं. 1 देखें). प्रतीकात्मक भाषा को प्रामाणिक खतरों से अलग करने में शुरुआती रिव्यूअर्स को आने वाली संभावित कठिनाइयों को देखते हुए, जागरूकता फैलाने संबंधी अपवाद में यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा दी गई है कि रिपोर्टिंग और जागरूकता फैलाने के लिए न्यूज़ आउटलेट द्वारा शेयर की गई प्रतीकात्मक भाषा को प्लेटफ़ॉर्म से हटाया न जाए.
8.2 Meta की मानवाधिकारों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों का अनुपालन
बोर्ड ने पाया कि इस कंटेंट को प्लेटफ़ॉर्म पर रखना Meta की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के अनुरूप था.
अभिव्यक्ति की आज़ादी (अनुच्छेद 19 ICCPR)
ICCPR का अनुच्छेद 19, अभिव्यक्ति के लिए व्यापक सुरक्षा देता है, जिसमें “सभी प्रकार की जानकारी और सुझाव माँगने, पाने और देने की आज़ादी शामिल है, चाहे वह किसी भी तरह की हो, मौखिक, लिखित रूप में या प्रिंट में हो, कला के रूप में, या किसी अन्य माध्यम से हो". "लोकतांत्रिक समाज में सार्वजनिक और राजनैतिक क्षेत्र के लोगों से संबंधित सार्वजनिक चर्चा" के लिए यह सुरक्षा "विशेष रूप से अधिक" होती है ( सामान्य कमेंट 34, पैरा. 34 और 38). राजनैतिक बयान और जनहित के अन्य मामलों पर बयानों को “उच्चतम स्तर की सुरक्षा मिलती है … जिसमें मीडिया और डिजिटल कम्युनिकेशन प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए ऐसा करना शामिल है, खास तौर पर चुनावों के संदर्भ में,” ( संयुक्त घोषणापत्र, 2021).
पूरे डिजिटल इकोसिस्टम में जानकारी की रिपोर्टिंग में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है (तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव से पहले हुआ राजनैतिक विवाद देखें). अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून, जनहित की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए पत्रकारिता की भूमिका को खास वैल्यू देता है (न्यूज़ रिपोर्टिंग में तालिबान का उल्लेख फ़ैसला देखें). मानवाधिकार समिति ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि “मुक्त, अपरिवर्तित और बेरोकटोक प्रेस या अन्य मीडिया ज़रूरी है” जहाँ प्रेस या अन्य मीडिया “सार्वजनिक समस्याओं पर बिना सेंसर किए या बिना बाधित किए कमेंट कर पाए और लोगों की राय बता पाए” (सामान्य कमेंट 34, पैरा. 13).
Facebook जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पूरी दुनिया में रिपोर्टिंग डिस्ट्रीब्यूट करने का साधन बन गया है और Meta ने अपनी कॉर्पोरेट मानवाधिकार पॉलिसी में पत्रकारिता के लिए अपनी ज़िम्मेदारियों को मान्यता दी है. कई मीडिया आउटलेट के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, डिस्ट्रीब्यूशन और ऑडियंस एंगेजमेंट के महत्वपूर्ण चैनल हैं. “डिजिटल गेटकीपर्स” के रूप में, जानकारी की सार्वजनिक एक्सेस पर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स का “गहरा प्रभाव” होता है ( A/HRC/50/29, पैरा. 90).
जहाँ राज्य, अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाता है, वहाँ प्रतिबंधों को वैधानिकता, वैधानिक लक्ष्य और आवश्यकता तथा आनुपातिकता की शर्तों को पूरा करना चाहिए (अनुच्छेद 19, पैरा. 3, ICCPR). Meta की स्वैच्छिक मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं को समझने के लिए बोर्ड इस फ़्रेमवर्क का उपयोग करता है - रिव्यू में मौजूद कंटेंट से जुड़े व्यक्तिगत फ़ैसले के लिए और यह जानने के लिए कि कंटेंट गवर्नेंस के प्रति Meta के व्यापक नज़रिए के बारे में यह क्या कहता है. जैसा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के बारे में संयुक्त राष्ट्र के खास रैपर्टर में कहा गया है कि भले ही “कंपनियों का सरकारों के प्रति दायित्व नहीं है, लेकिन उनका प्रभाव इस तरह का है जो उनके लिए अपने यूज़र की सुरक्षा के बारे में इस तरह के सवालों का मूल्यांकन करना ज़रूरी बनाता है” (A/74/486, पैरा. 41).
I. वैधानिकता (नियमों की स्पष्टता और सुलभता)
वैधानिकता के सिद्धांत के लिए यह ज़रूरी है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कोई भी प्रतिबंध, किसी ऐसे स्थापित नियम के अनुरूप होना चाहिए, जो यूज़र्स के लिए एक्सेस लायक और स्पष्ट हो. नियम को “इतनी सटीकता के साथ बनाया जाना चाहिए कि व्यक्ति उसके अनुसार अपने आचरण को विनियमित कर सके और उसे सार्वजनिक रूप से एक्सेस योग्य होना चाहिए,” ( सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा 25 पर). इसके अलावा, अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करने वाले नियम “उन लोगों को अभिव्यक्ति की आज़ादी को प्रतिबंधित करने के निरंकुश अधिकार नहीं दे सकते जिन पर इन्हें लागू करने की ज़िम्मेदारी है” और नियमों में "उन लोगों के लिए पर्याप्त मार्गदर्शन भी होना चाहिए जिन पर इन्हें लागू करने ज़िम्मेदारी है ताकि वे यह पता लगा सकें कि किस तरह की अभिव्यक्ति को उचित रूप से प्रतिबंधित किया गया है और किसे नहीं" (सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा 25 पर); A/HRC/38/35 (undocs.org), पैरा 46 पर). स्पष्टता या सटीकता में कमी के कारण नियमों का असमान और स्वैच्छिक एन्फ़ोर्समेंट हो सकता है. Meta पर यह बात लागू होती है कि उसके यूज़र्स को Facebook और Instagram पर कंटेंट पोस्ट करने के परिणाम पता होने चाहिए और कंटेंट रिव्यूअर्स के पास एन्फ़ोर्समेंट करने के बारे में स्पष्ट मार्गदर्शन होना चाहिए.
बोर्ड ने नोट किया कि ऊपर बताया गया “जागरूकता फैलाने” संबंधी अपवाद, इस कंटेंट को पोस्ट करने के समय भी पॉलिसी की लोगों को दिखाई देने वाली भाषा में शामिल नहीं था. दूसरे शब्दों में, उस समय भी यूज़र्स को इस बात की जानकारी नहीं थी कि अन्यथा उल्लंघन करने वाले कंटेंट को उस स्थिति में छूट दी जाती है जब उसे निंदा करने या जागरूकता फैलाने के संदर्भ में शेयर किया जाता है. इससे Meta के प्लेटफ़ॉर्म पर यूज़र्स द्वारा जनहित की चर्चाएँ शुरू करने या उनमें भाग लेने में रुकावट आई होगी (भारत के ओडिशा राज्य में सांप्रदायिक दंगे फ़ैसला देखें).
इसके ताज़ा पॉलिसी अपडेट के बाद और पुराने केसों में बोर्ड के सुझावों पर विचार करते हुए, Meta ने अब कम्युनिटी स्टैंडर्ड में जागरूकता फैलाने संबंधी अपवाद शामिल किया है. पॉलिसी में कहा गया है कि Meta उन स्थितियों में धमकियों को प्रतिबंधित नहीं करता है जब उन्हें जागरूकता फैलाने या निंदा करने के संदर्भ में शेयर किया जाता है, इसलिए इससे वैधानिकता की ज़रूरत का अनुपालन सुनिश्चित होता है.
बोर्ड ने पाया कि हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के पॉलिसी बनाने के कारण में कहा गया है कि “प्रामाणिक धमकी” का मूल्यांकन करते समय “संदर्भ” पर विचार किया जा सकता है, लेकिन पॉलिसी में यह नहीं बताया गया है कि प्रतीकात्मक (या गैर-शाब्दिक) कथनों को किस तरह प्रामाणिक धमकियों से अलग किया जाए. बोर्ड ने ईरान में विरोध प्रदर्शन का स्लोगन और ईरानी महिला से सड़क पर हुज्जत केसों के अपने निष्कर्षों को दोहराते हुए कहा कि Meta को यह स्पष्टीकरण शामिल करना चाहिए कि वह किस तरह प्रतीकात्मक (गैर-शाब्दिक) धमकियों को मॉडरेट करता है.
II. वैधानिक लक्ष्य
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों का एक वैधानिक लक्ष्य होना चाहिए जिन्हें ICCPR के अनुच्छेद 19 के पैरा. 3 में दिया गया है. इसमें “दूसरों के अधिकारों” की सुरक्षा करना भी शामिल है. “जान-माल के नुकसान का प्रामाणिक खतरा उत्पन्न करने वाले या सार्वजनिक सुरक्षा को सीधी धमकी देने वाले” कंटेंट को हटाकर “संभावित ऑफ़लाइन हिंसा को रोकने” की कोशिश करते हुए, हिंसा और उकसावे से जुड़ा कम्युनिटी स्टैंडर्ड, जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 6, ICCPR) और व्यक्ति की सुरक्षा के अधिकार (अनुच्छेद 9 ICCPR, सामान्य कमेंट सं. 35, पैरा. 9) की रक्षा के वैधानिक लक्ष्यों की पूर्ति करता है.
III. आवश्यकता और आनुपातिकता
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाए जाने वाले सभी प्रतिबंध "उनके सुरक्षात्मक कार्य को पूरा करने के लिए उपयुक्त होने चाहिए; वे अपने सुरक्षात्मक कार्य कर सकने वाले उपायों में से कम से कम हस्तक्षेप करने वाले उपाय होने चाहिए; वे सुरक्षित रखे जाने वाले हित के अनुपात में होना चाहिएM” (सामान्य कमेंट 34, पैरा. 34). सोशल मीडिया कंपनियों को समस्या वाले कंटेंट को हटाने के बजाय उस पर कई तरह की संभावित प्रतिक्रियाओं पर विचार करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिबंध कम से कम हों ( A/74/486, पैरा. 51).
इस केस में कंटेंट को प्लेटफ़ॉर्म से निकालने से आवश्यकता और आनुपातिकता के सिद्धांतों की संतुष्टि नहीं होगी क्योंकि इसे एक मीडिया आउटलेट द्वारा जागरूकता फैलाने के लिए शेयर किया गया था और इसमें प्रतीकात्मक राजनैतिक भाषण है जिससे हिंसा को उकसावा नहीं मिलता और यह शाब्दिक या प्रामाणिक धमकी नहीं है.
बोर्ड ने आगे नोट किया कि यहाँ विचाराधीन अभिव्यक्ति अपनी राजनैतिक प्रकृति के कारण “विशेष तौर पर उच्च” सुरक्षा की हकदार है ( सामान्य कमेंट 34, पैरा. 34). यह इसलिए भी इसकी हकदार है क्योंकि इसे संसद में राष्ट्रीय राजनैतिक मुद्दों पर केंद्रित चर्चा में डिलीवर किया गया था. यह भाषण ऐसे समय दिया गया था जब पाकिस्तान में चुनावों से पहले भारी सामाजिक और राजनैतिक उथल-पुथल थी. 2023 में इन चुनावों में देरी हुई और अंत में ये चुनाव 8 फ़रवरी, 2024 को हुए. चुनावों से पहले के संदर्भ में राजनैतिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए मीडिया द्वारा शेयर किए गए कंटेंट को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए.
इस संदर्भ में मीडिया की रिपोर्टिंग की भूमिका लगातार महत्वपूर्ण होती जा रही है और उसे खास वैल्यू और सुरक्षा प्राप्त है (न्यूज़ रिपोर्टिंग में तालिबान का उल्लेख फ़ैसला और सामान्य कमेंट 34, पैरा. 13 देखें). जानकारी और बयानों के डिस्ट्रीब्यूशन में डिजिटल मीडिया आउटलेट महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. Meta द्वारा इस कंटेंट को हटाना, जनहित के मामलों पर चर्चा में प्रेस के योगदान पर अनुपातहीन प्रतिबंध होगा.
बोर्ड ने आगे नोट किया कि कंटेंट को हटाना आनुपातिक प्रतिबंध नहीं होगा क्योंकि खुद भाषण को एक प्रतीकात्मक, गैर-शाब्दिक तरीके से समझा जाना चाहिए था और उससे हिंसा को वास्तविक उकसावा नहीं मिलता. रबात एक्शन प्लान में बताए गए छह कारक (संदर्भ, वक्ता, इरादा, अभिव्यक्ति का कंटेंट, अभिव्यक्ति का दायरा और तात्कालिक नुकसान की आशंका देखना) इस मूल्यांकन में मूल्यवान मार्गदर्शन देते हैं.
यद्यपि रबात एक्शन प्लान की बातों को राष्ट्रीय, जातीय या धार्मिक नफ़रत भड़काने को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था और उसे सामान्य उकसावे के लिए नहीं बनाया गया था, इसलिए वे यह आकलन करने के लिए उपयोगी फ़्रेमवर्क देते हैं कि क्या कंटेंट अन्य लोगों को हिंसा के लिए भड़काता है (जैसे कि ईरान में विरोध प्रदर्शन का स्लोगन और क्यूबा में महिलाओं से विरोध प्रदर्शन का आह्वान देखें).
कंटेंट को आगामी चुनावों के संदर्भ में और जारी राजनैतिक उथल-पुथल के बीच पोस्ट किया गया था. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की बेदखली और गिरफ़्तारी से मौजूदा तनाव और ध्रुवीकरण में बढ़ोतरी हुई, पूरे देश में भारी विरोध प्रदर्शन हुए, गिरफ़्तारियाँ हुईं, सेना की इमारतों पर अप्रत्याशित हमले हुए और पुलिस ने लोगों का हिंसक दमन किया – खास तौर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर, खान के समर्थकों पर और विपक्षी दलों के लोगों पर. बोर्ड ने जिन विशेषज्ञों से परामर्श किया, उन्होंने नोट किया कि पाकिस्तान में हमेशा से सरकार द्वारा उन लोगों को निशाना बनाया जाता रहा है जो सरकार, सैन्य संस्थाओं और न्यायपालिका की आलोचना करते हैं. ऐसे लोगों को गिरफ़्तार करके उन पर कानूनी कार्रवाई की जाती है.
भले ही पोस्ट में दिखाया गया राजनेता एक सार्वजनिक हस्ती है और उनकी रोबदार स्थिति के कारण उनके बयान से नुकसान होने की ज़्यादा आशंका है, लेकिन उनका इतिहास हिंसा भड़काने वाला नहीं रहा है. कंटेंट और भाषण का तरीका बताता है कि उसकी प्रकृति शाब्दिक नहीं बल्कि प्रतीकात्मक है, क्योंकि राजनेता ने किसी खास टार्गेट का नाम नहीं लिया है (उन्होंने सिर्फ़ सरकारी अधिकारियों की कैटेगरी बताई है) और उन्होंने खुद को भी टार्गेट की गई कैटेगरी में शामिल किया है. विशेषज्ञों ने यह भी नोट किया कि अत्यधिक उत्तेजक और भड़काऊ भाषा का उपयोग अक्सर पाकिस्तानी राजनेताओं द्वारा किया जाता रहा है. इसके अलावा, राजनेता के पूरे भाषण में, जिसकी प्रकृति अक्सर उदाहरणात्मक थी, पाकिस्तान के संसदीय चुनावों से पहले जनहित के व्यापक मुद्दों की चर्चा भी की गई थी जिनमें बलूच लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन शामिल था. इसलिए, संदर्भ से जुड़े कारक और भाषण के सार से पता चलता है कि राजनेता का उद्देश्य तत्काल कार्रवाई की ज़रूरत बताना था, सरकारी अधिकारियों को लटकाना नहीं था बल्कि उन्हें जवाबदेह बनाना था. भले ही कंटेंट की पहुँच व्यापक थी, यह उस समय की अन्य घटनाओं के मुकाबले अलग नहीं दिखाई दिया. इसके अलावा, राजनेता ने किसी खास टार्गेट का नाम नहीं लिया था बल्कि सरकारी लोगों का सामान्य रेफ़रेंस दिया था, जिनमें वे खुद भी शामिल थे, इसलिए भाषण से तात्कालिक नुकसान होने की आशंका नहीं थी. वक्ता की पहचान के बावजूद उनके इरादे, अभिव्यक्ति के कंटेंट और उसकी पहुँच और तात्कालिक नुकसान की आशंका, सभी के अनुसार कंटेंट को प्लेटफ़ॉर्म पर बनाए रखना उचित था.
बोर्ड यह मानता है कि इस केस में बताए गए संदर्भों जैसे जटिल राजनैतिक संदर्भों में, सार्थकता और राजनेता के भाषण का व्यापक चुनावी परिदृश्य में मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है. भाषण का समय, उस समय की राजनैतिक परिस्थितियों को देखते हुए, मौलिक है, जैसा कि पहले बताया गया है (सेक्शन 2 देखें). इस प्रकृति का कोई भी भाषण, जिसे आगामी चुनावों के संदर्भ में देखा जाता हो, प्लेटफ़ॉर्म पर बनाए रखा जाना चाहिए.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि उच्च जनहित वैल्यू वाला भाषण, जैसे इस केस का कंटेंट, प्लेटफ़ॉर्म पर बनाए रखा जाता है, बोर्ड ने ब्राज़ील के जनरल का भाषण केस के सुझाव सं. 1 को दोहराया, जिसे Meta द्वारा स्वीकार किया गया था. उस केस में, बोर्ड ने सुझाव दिया था कि Meta, चुनाव से जुड़े अपने प्रयासों का मूल्यांकन करने के लिए एक फ़्रेमवर्क बनाएबोर्ड. इसमें चुनाव से जुड़े सफल प्रयासों के बारे में मीट्रिक बनाना और शेयर करना शामिल है, खास तौर पर Meta की कंटेंट पॉलिसी के उसके द्वारा एन्फ़ोर्समेंट को ध्यान में रखते हुए. इससे कंपनी न सिर्फ़ गलतियों को पहचान पाएगा और उन्हें उलट पाएगी, बल्कि यह ट्रैक भी रख पाएगी कि चुनावों के संदर्भ में उसके उपाय कितने प्रभावी हैं. इस सुझाव को लागू करने के लिए, देश विशिष्ट रिपोर्ट प्रकाशित करने की ज़रूरत है.
इस सुझाव के जवाब में Meta ने बोर्ड को बताया कि चुनावों से जुड़े उसके प्रयासों की सफलता का मूल्यांकन करने और उनके असर के बारे में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए उसके पास कई तरह के मीट्रिक मौजूद हैं लेकिन वह उन्हें चुनाव संबंधी मीट्रिक के खास सेट में मिलाने की कोशिश करेगा जिससे कंपनी यह सुधार कर पाएगी कि वह चुनावों के पहले, चुनावों के दौरान और चुनावों के बाद में अपने प्रयासों का मूल्यांकन किस तरह करती है. Meta ने रिपोर्ट किया कि वह 2024 के कई चुनावों के अलग-अलग मीट्रिक का उपयोग करके अभी एक पायलट मूल्यांकन कर रहा है और उसने बोर्ड को बताया कि 2025 की शुरुआत में इन मीट्रिक का विवरण सार्वजनिक रूप से शेयर करने की उसकी योजना है. बोर्ड ने Meta से कहा कि अगर संभव हो तो वह इस प्रोसेस को जल्दी पूरा करे क्योंकि वैश्विक बहुसंख्यक देशों सहित इस वर्ष बहुत सारे देशों में चुनाव होने जा रहे हैं.
9. ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला
ओवरसाइट बोर्ड ने कंटेंट को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा है.
10. सुझाव
ओवरसाइट बोर्ड ने तय किया कि वह इस फ़ैसले में कोई नया सुझाव नहीं देगा क्योंकि ब्राज़ील के जनरल का भाषण केस में दिया गया उसका सुझाव यहाँ भी प्रासंगिक है, जिसे Meta द्वारा स्वीकार किया गया था. यह सुनिश्चित करने के लिए कि उच्च जनहित वैल्यू वाला भाषण, जैसे इस केस का कंटेंट, प्लेटफ़ॉर्म पर बनाए रखा जाता है, बोर्ड ने यह सुझाव दोहराया:
Meta को एक ऐसा फ़्रेमवर्क बनाना चाहिए जो चुनाव के संबंध में कंपनी के प्रयासों का मूल्यांकन करे. इसमें चुनाव से जुड़े सफल प्रयासों के लिए मीट्रिक बनाना और शेयर करना शामिल है, खास तौर पर Meta की कंटेंट पॉलिसी के एन्फ़ोर्समेंट को ध्यान में रखते हुए. इस सुझाव को लागू करने के लिए, देश विशिष्ट रिपोर्ट प्रकाशित करने की ज़रूरत है (ब्राज़ील के जनरल का भाषण, सुझाव सं. 1).
*प्रक्रिया संबंधी नोट:
ओवरसाइट बोर्ड के फ़ैसले पाँच मेंबर्स के पैनल द्वारा लिए जाते हैं और उन पर बोर्ड के अधिकांश मेंबर्स की सहमति होती है. ज़रूरी नहीं है कि बोर्ड के फ़ैसले उसके हर एक मेंबर की निजी राय को दर्शाएँ.
इस केस के फ़ैसले के लिए, बोर्ड की ओर से स्वतंत्र रिसर्च करवाई गई थी. बोर्ड की सहायता एक स्वतंत्र शोध संस्थान ने की जिसका मुख्यालय गोथेनबर्ग यूनिवर्सिटी में है और जिसके पास छह महाद्वीपों के 50 से भी ज़्यादा समाजशास्त्रियों की टीम के साथ ही दुनियाभर के देशों के 3,200 से भी ज़्यादा विशेषज्ञ हैं. बोर्ड को Duco Advisers की सहायता भी मिली, जो भौगोलिक-राजनैतिक, विश्वास और सुरक्षा और टेक्नोलॉजी के आपसी संबंध पर काम करने वाली एक एडवाइज़री फ़र्म है. Memetica ने भी विश्लेषण उपलब्ध कराया जो सोशल मीडिया ट्रेंड पर ओपन-सोर्स रिसर्च में एंगेज होने वाला संगठन है. Lionbridge Technologies, LLC कंपनी ने भाषा संबंधी विशेषज्ञता की सेवा दी, जिसके विशेषज्ञ 350 से भी ज़्यादा भाषाओं में कुशल हैं और वे दुनियाभर के 5,000 शहरों से काम करते हैं.