ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के फ़ैसले को बदला: केस 2021-005-FB-UA
20 मई 2021
ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत एक कमेंट हटाने के उसके फ़ैसले को बदल दिया है. बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने पाया कि यह नफ़रत फैलाने की निंदा करने या इस बारे में जागरूकता बढ़ाने वाले कंटेंट के लिए Facebook के अपवाद के अंतर्गत था.
केस की जानकारी
24 दिसंबर 2020 को अमेरिका के एक Facebook यूज़र ने एक कमेंट पोस्ट किया जिसमें ‘डेली स्ट्रगल’ या ‘दो बटन’ वाले मीम का रूपांतरण था. इसमें ओरिजनल 'दो बटन' वाले मीम का स्प्लिट-स्क्रीन कार्टून दिखाया गया था, लेकिन इसमें कार्टून कैरेक्टर के चेहरे के बजाय तुर्की का झंडा दिखाई दे रहा था. कार्टून कैरेक्टर का सीधा हाथ उसके सिर पर था और उसका पसीना बहता दिखाई दे रहा था. कैरेक्टर के ऊपर, स्प्लिट-स्क्रीन के दूसरे भाग में दो लाल बटन मौजूद हैं, जिनके अंग्रेज़ी भाषा में अपने-अपने बयान हैं: “The Armenian Genocide is a lie” (आर्मेनियाई नरसंहार एक झूठ है) और “The Armenians were terrorists that deserved it” (आर्मेनियाई लोग आतंकवादी थे और उनका यही हश्र होना था).
एक कंटेंट मॉडरेटर ने पाया कि मीम से Facebook के नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन हुआ था, लेकिन दूसरे ने पाया कि उससे क्रूरता और असंवेदनशीलता से जुड़े उसके कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन हुआ था. Facebook ने क्रूरता और असंवेदनशीलता से जुड़े अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत कमेंट हटा दिया और यूज़र को इसकी सूचना दी.
हालाँकि, यूज़र की अपील के बाद, Facebook ने पाया कि कंटेंट को उसके नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत हटाया जाना चाहिए था. कंपनी ने यूज़र को यह नहीं बताया कि उसने किसी दूसरे कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत अपने फ़ैसले को कायम रखा.
मुख्य निष्कर्ष
Facebook ने कहा कि उसने कमेंट इसलिए हटा दिया क्योंकि वाक्य “The Armenians were terrorists that deserved it” (आर्मेनियाई लोग आतंकवादी थे और उनका यही हश्र होना था) में आर्मेनियाई लोगों की राष्ट्रीयता और जाति के आधार पर दावे किए गए थे कि वे अपराधी थे. Facebook के अनुसार, इससे नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े उसके कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन हुआ था.
Facebook ने यह भी कहा कि मीम उस अपवाद के अंतर्गत नहीं था जिसके तहत यूज़र्स नफ़रत वाले कंटेंट की निंदा करने या उसे लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए उसे शेयर कर सकते हैं. कंपनी ने दावा किया कि कार्टून कैरेक्टर को मीम में दिखाए गए दो बयानों की निंदा करने या उन्हें अपनाने के रूप में देखा जा सकता है.
हालाँकि, बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने यह माना कि कंटेंट इस अपवाद के अंतर्गत आता था. 'दो बटन' वाले मीम में दो अलग-अलग विकल्पों के बीच उनका समर्थन करने के लिए नहीं, बल्कि उनके संभावित अंतर्विरोध को दर्शाने के लिए अंतर बताया जाता है. इसी तरह, उन्होंने पाया कि यूज़र ने आर्मेनियाई नरसंहार को नकारने और वहीं उन ऐतिहासिक अत्याचारों को सही भी ठहराने से जुड़ी तुर्की सरकार की करतूतों को लोगों के सामने लाने और उनकी निंदा करने के लिए वह मीम शेयर किया था. बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने एक पब्लिक कमेंट पर ध्यान दिया, जिसमें कहा गया था कि उस मीम में "नरसंहार का शिकार हुए लोगों का मज़ाक नहीं उड़ाया गया, बल्कि उस समय तुर्की के लोगों में इस घटना से इनकार करने की आदत और साथ ही यह भी कहा जाना कि नरसंहार नहीं हुआ था और शिकार हुए लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए था, इसका मज़ाक उड़ाया गया था." बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने यह भी माना कि कंटेंट को Facebook के व्यंग्य से जुड़े अपवाद में शामिल किया जा सकता है, जो कम्युनिटी स्टैंडर्ड में शामिल नहीं है.
हालाँकि, बोर्ड के कुछ सदस्यों ने पाया कि यह बात पर्याप्त रूप से स्पष्ट नहीं हुई कि यूज़र ने तुर्की सरकार की आलोचना करने के लिए कंटेंट शेयर किया. चूँकि कंटेंट में आर्मेनियाई लोगों के बारे में एक हानिकारक सामान्यकरण शामिल था, इसलिए बोर्ड के कुछ सदस्यों ने पाया कि इसमें नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन हुआ था.
इस केस में, बोर्ड ने ध्यान दिया कि Facebook ने यूज़र को यह बताया कि उन्होंने क्रूरता और असंवेदनशीलता से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन किया था, जबकि कंपनी का एन्फ़ोर्समेंट नफ़रत फ़ैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड पर आधारित होकर किया था. बोर्ड इस बात को लेकर भी चिंतित था कि क्या Facebook के मॉडरेटर्स के पास व्यंग्य वाले कंटेंट का रिव्यू करने के लिए ज़रूरी समय और रिसोर्स थे.
ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला
ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook का कंटेंट को हटाने का फ़ैसला बदल दिया और कमेंट को रीस्टोर करने के लिए कहा.
पॉलिसी से जुड़े सुझाव देते हुए बोर्ड ने Facebook को कहा कि वह:
- यूज़र्स को कंपनी द्वारा लागू कम्युनिटी स्टैंडर्ड के बारे में जानकारी दे. अगर Facebook यह तय करता है कि यूज़र के कंटेंट से उन्हें शुरुआत में बताए गए कम्युनिटी स्टैंडर्ड के बजाय किसी दूसरे कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन हुआ है, तो उन्हें अपील करने का एक मौका और मिलना चाहिए.
- नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड में यूज़र्स के लिए आम भाषा में व्यंग्य से संबंधित अपवाद शामिल करे, जो इस समय उपलब्ध नहीं है.
- प्रासंगिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए व्यंग्यात्मक कंटेंट को सही ढंग से मॉडरेट करने की प्रक्रियाएँ अपनाए. इसमें कंटेंट मॉडरेटर्स को Facebook की लोकल ऑपरेशन टीम की एक्सेस देना और मूल्यांकन करने के लिए इन टीमों से विचार-विमर्श करने का पर्याप्त समय देना शामिल है.
- यूज़र्स को अपनी अपील में यह बताने दे कि उनका कंटेंट नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ी पॉलिसी के किसी अपवाद के अंतर्गत आता है. इसमें व्यंग्यात्मक कंटेंट के अपवाद और वह स्थिति शामिल है, जिसमें यूज़र्स नफ़रत फैलाने वाले कंटेंट की निंदा करने या उसे लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए उसे शेयर करते हैं.
- यह सुनिश्चित करे कि पॉलिसी से जुड़े अपवादों पर आधारित अपीलों को ह्यूमन रिव्यू के लिए प्राथमिकता दी जाए.
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